शीतला माता का व्रत चैत्र कृष्ण की अष्टमी को किया जाता है। व्रत का संकल्प चैत्र कृष्णा सप्तमी को लेकर अष्टमी को पूर्ण होता है। शीतला माता की व्रत को बसोड़ा भी कहते हैं। बसोड़े का अर्थ है बासी भोजन करने का व्रत।
यह है व्रत का विधान: शीतला माता के व्रत करने के लिए चैत्र कृष्ण सप्तमी जो इस बार 24 मार्च को है। उस दिन घर में सुख, शांति और संपन्नता के लिए इस व्रत का संकल्प लेकर के शाम के समय खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं। खाद्य पदार्थों में सूखी मेवा, भात मिष्ठान एवं मीठे पुए तैयार किए जाते हैं। अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण अष्टमी को जो इस बार 25 अप्रैल को है, बासी भोजन करने का विधान है। जो भोजन हमने रात्रि को तैयार किया था वही भोजन अष्टमी को पूरे दिन खाते हैं, क्योंकि इस इस दिन चूल्हा जलाना मना है। वैसे तो घर में इस दिन झाड़ू लगाना भी वर्जित है। झाड़ू एवं सूप का प्रयोग इस दिन नहीं किया जाता है।
Sheetala Saptami 2022: आज है शीतला सप्तमी, इस विधि से करें शीतला माता की पूजा व नोट कर लें व्रत नियम
माता जाता है कि माता अपने संतान और अपने परिवार की सुख-शांति के लिए इस व्रत को करती हैं। ऐसी मान्यता हैकि माता शीतला गदर्भ पर सवार होकर हाथ में झाड़ू और गले में नीम के पत्तों की माला पहनकर आती हैं। इसका तात्पर्य है शीतला माता को शीतलता,स्वच्छता, शांति और सौहार्द बहुत प्रिय है। इसका व्रत करने से मां शीतला संतान की आयु एवं सौख्य के साथ साथ घर में धन बरसाती हैं। अष्टमी के दिन शीतला माता का कहानी सुनें और’ॐ शीतला मातायै नमः’ का जाप करें। बासी भोजन का भोग लगाकर स्वयं अल्पाहार करें। कुछ नीम के पत्ते भी चबाएं। नीम भी ठंडी प्रकृति का होता है जो गर्मी, पित्त और दाहनाशक भी है। इसलिए माता शीतला अपने नाम के अनुरूप ही शीतलता प्रदान करने वाली है। जो व्यक्ति एवं माताएं बसोड़ा के इस व्रत को तन्मयता से और विधि-विधान से करती हैं उन्हें जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं रहती है।
(ये जानकारियां धार्मिक आस्थाओं और लौकिक मान्यताओं पर आधारित हैं, जिसे मात्र सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया है।)