एनबीटी ने दिल्ली में उनसे बातचीत की तो मुस्कुराते हुए उन्होंने अपने मेडल दिखाए और बताया कि वह अब विदेश जाकर ऐसे ही दौड़ना चाहती हैं, ताकि देश का नाम और रोशन कर सकें। हरियाणा के चरखी दादरी के गांव कदमा में खेतों की बीच रहने वालीं रामबाई का जन्म 1 जनवरी, 1917 को हुआ था। गांव में उन्होंने उम्रभर घर और खेत में खूब काम किया। इस एक्टिव जिंदगी ने उन्हें न केवल लंबी उम्र दी, बल्कि इस उम्र में दौड़ सकने का हौसला भी दिया। इस उपलब्धि के पीछे उनकी नातिन शर्मिला सांगवान की मेहनत और जुझारूपन रहा, जिन्होंने पहली बार 27 नवबंर 2021 में उनका नाम वाराणसी में हुई तीसरी राष्ट्रीय मास्टर्स एथलेटिक्स प्रतियोगिता के लिए फॉर्म में भरा। वहां उन्होंने अपनी बेटी संतरा देवी, बेटे मुख्तयार सिंह और बहू भतेरी देवी के साथ दौड़ में भाग लिया। परिवार के इन सब सदस्यों ने अपने अपने वर्ग में गोल्ड और ब्रॉन्ज मैडल जीते लेकिन रामबाई ने 4 गोल्ड और 1 ट्रॉफी जीतकर सबको हैरान कर दिया। वहां से शुरू हुआ गोल्ड जीतने का यह सिलसिला देश के अन्य हिस्सों के साथ नेपाल में भी जारी रहा और इस तरह सुपरदादी रामबाई ने एक एक कर 21 गोल्ड झटककर उम्र को सीमा मानने वालों को दुबारा सोचने के लिए मजबूर कर दिया।
सुपरदादी रेस के साथ शॉटपुट और लॉन्ग जंप्स में भी भाग लेती हैं। इस दौरान कभी उनके मुकाबले में कोई दूसरा नहीं उतर पाता, क्योंकि उनकी उम्र का वर्ग अपने आप में अनूठा है। वह अकेले ही दौड़ती हैं।
रोज एक किलो दूध
अपनी फिटनेस का राज बताते हुए दादी ने कहा कि अच्छा खाना और दौड़-भाग करते रहना बहुत जरूरी है। वह रोज एक किलो खालिस दूध पीती हैं। 125 ग्राम देशी घी का चूरमा और आधा किलो दही खाती हैं। सर्दियों में बाजरे की रोटी खाना उन्हें पसंद है। हालांकि खेलों के प्रोत्साहन के दावे करने वाला सरकारी अमला या दूसरी किसी संस्था ने अब तक सुपरदादी से संपर्क साधकर न उनका सम्मान किया है और न उन्हें प्रोत्साहन दिया है, लेकिन रामबाई इन सब से बेपरवाह अपनी धुन में उपलब्धियों की रेस में अव्वल बनी हुई हैं।