दिल्ली में मिले मंकीपॉक्स के मरीज की हालत अब कैसी, डॉक्टरों ने दिया हेल्थ अपडेट
Monkeypox in India Update: दिल्ली में मिले मंकीपॉक्स के मरीज की हालत अब कैसी, डॉक्टरों ने दिया हेल्थ अपडेट
मंकीपॉक्स को मैनेज करने की चुनौती

उन्होंने कहा कि मंकीपॉक्स को मैनेज करने की कुछ चुनौतियां भी हैं।
- पहली चुनौती है इसे लेकर यह अवधारणा बनना कि यह सिर्फ बायसेक्सुअल लोगों में ही फैल रही है या फिर यह किसी तरह की एसटीडी है। डॉक्टरों को आशंका है कि इससे लोग बीमारी के बारे में बताने से हिचकेंगे, जबकि यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। बायसेक्सुअल लोगों में जागरूकता के लिए एचआईवी और एनएसीओ (NACO) से मदद ली जा रही है, ताकि बचाव को लेकर उचित अडवाइजरी जारी की जा सके।
- एसटीडी वे बीमारियां होती हैं जो सिर्फ शारीरिक संबंधों से ही फैलती हैं लेकिन मंकीपॉक्स में ऐसा नहीं है।
- दूसरी चुनौती यह है कि इसके संक्रमण का खतरा ज्यादातर युवाओं में है। 1978 के बाद जन्म लेने वालों में प्रोटेक्शन नहीं है। क्योंकि इस समय के बाद स्मॉल पॉक्स का वैक्सीनेशन बंद कर दिया गया था। यानी 44-45 साल से कम उम्र के लोगों में प्रोटेक्शन नहीं है, लेकिन इससे बड़ी उम्र के लोगों में प्रोटेक्शन मिलने की संभावना है।
मंकीपॉक्स की जांच कोविड से अलग क्योंकि…

डॉक्टर प्रज्ञा ने कहा कि अभी केवल एनवाईवी पुणे में ही मंकीपॉक्स की जांच की जा रही है। हालांकि हमने 15 लैब को इसकी ट्रेनिंग दी है। उन्हें किट भी दे दिया है। लेकिन अभी उन्हें जांच के लिए नहीं कहा गया है। जांच वो तभी करेंगे, जब उन्हें इसकी अनुमति दी जाएगी। मंकीपॉक्स की जांच कोविड से अलग है क्योंकि
- कोविड आरएनए वायरस है, जिसकी जांच आरटी-पीसीआर से की जाती है। उसका साइज 30kb है। वहीं मंकीपॉक्स डीएनए वायरस है और इसका साइज लगभग 189kb है। यह काफी बड़ा है। इसके लिए पीसीआर जांच की जा रही है।
- मंकीपॉक्स की दो प्रकार से जांच की जाती है। पहले ऑर्थोपॉक्स की जांच करते हैं, जिसमें सभी प्रकार के पॉक्स का पता चल जाता है और फिर मंकीपॉक्स की जांच करते हैं।
- संक्रमित मरीज के शरीर पर दाने बन जाते हैं, वह बहुत दर्द करता है। उससे लिक्विड जांच के लिए लेते हैं, इसके अलावा नाक व गले से स्वैब भी लेते हैं, साथ में यूरिन व ब्लड सैंपल भी लिया जाता है।
लंबा रह सकता है इंफेक्शन क्योंकि…

डॉक्टर प्रज्ञा ने कहा कि कोविड तेजी से फैलता है, लेकिन डब्ल्यूएचओ के डेटा के अनुसार यह जनवरी में ही आने लगा था, लेकिन मई में जाकर पीक हुआ। अमेरिका और ब्रिटेन में ज्यादा मामले आ रहे हैं, वहां पर लोग बीमारी को छिपाते नहीं है। बाकी देशों में इसको लेकर सोच नकारात्मक रहने की आशंका है। यह इंफेक्शन ज्यादा देर तक रह सकता है क्योंकि
- जब दाने सूख जाते हैं और स्किन पर बनने वाली पपड़ी गिरने लगती है, उसमें भी संक्रमण रह सकता है। इसलिए यह वायरस 2 से 4 हफ्ते तक रहता है।
- कई बार संक्रमित मरीज ठीक होने के बाद मार्क रह जाता है। हालांकि, यह अपने आप ठीक होने वाली बीमारी है, लेकिन नई बीमारी है, इसलिए संक्रमित मरीजों का आइसोलेशन जरूरी है।