कोर्ट ने बताई है जांच की जरूरत
कोर्ट ने कहा कि प्राथमिकी को देखने से प्रथम दृष्टया या जुबेर के खिलाफ अपराध का बनना प्रतीत होता है और इसकी विवेचना की जरूरत है। जुबैर की ओर से कहा गया था कि उसके ट्वीट से किसी वर्ग की धार्मिक भावनाएं आहत नहीं होती हैं। उन्हें बेवजह परेशान करने की नीयत से उसके खिलाफ प्राथमिकी लिखी गई है। ज़ुबैर ने प्राथमिकी को चुनौती देते हुए कहा था कि उनके ट्वीट ने किसी वर्ग के धार्मिक विश्वास का अपमान या नीचा दिखाने का प्रयास नहीं किया था। कोर्ट में कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ ‘सिर्फ परोक्ष उद्देश्य से उत्पीड़न के लिए’ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। हालांकि, कोर्ट ने उनकी दलील को नहीं माना।
जुबैर को बताया गया आदतन अपराधी
जुबैर की ओर से एफआईआर रद्द करने की याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार के वकील ने उन्हें आदतन अपराधी करार दिया। वकील ने उसके खिलाफ चार आपराधिक मामलों का जिक्र कोर्ट में किया। राज्य की ओर से कहा गया कि एफआईआर में संज्ञेय अपराधों के मामलों का खुलासा हुआ है। इसलिए, इसे अलग रूप में नहीं देखा जा सकता है। कोर्ट ने इसके बाद याचिकाकर्ताओं की दलीलों को ठुकरा दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से जो दलील दी जा रही है, वह उचित जांच से ही सत्यापित हो सकती है।
पीठ ने कहा कि इस मामले में जिन कानून के बिंदुओं का जिक्र किया गया है, उसे भी केवल ट्रायल कोर्ट की ओर से ही उचित तरीके से देखा जा सकता है। इस मामले में चार्जशीट दायर होने के बाद इस पर कोई बात कही जा सकती है। कोर्ट के इस आदेश के बाद अब जुबैर पर शिकंजा कस सकता है।