कुल 1299 उम्मीदवार चुनाव में उतारे तेरहवां लोस चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों ने 

स्थिर साझा सरकारों का दौर हुआ शुरु तेरहवां लोस चुनाव से


 


आवाज़ ए हिंद टाइम्स सवांदाता, नई दिल्ली, अप्रैल। वर्ष 1999 में हुए तेरहवें लोकसभा चुनाव में भी यद्यपि किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला लेकिन केंद्र में राजनीतिक अस्थिरता का दौर खत्म हुआ और स्थिर साझा सरकारें बनने का सिलसिला शुरु हुआ।


एक वोट से सरकार गंवाने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राजनीतिक दलों से गठबंधन कर अपनी स्थिति सुदृढ कर ली थी और अटल बिहारी वाजपेयी एक बार फिर से प्रधानमंत्री बने और उनके जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनी और पूरे समय चली। 


इस चुनाव में कांग्रेस की स्थिति और खराब हुई तथा उसकी सीटों की संख्या में और कमी आई। भाजपा को इस चुनाव में 182 सीटें मिली थी और कांग्रेस 114 सीटों पर ही सिमट गई थी। इस चुनाव की विशेषता यह थी कि कांग्रेस का नेतृत्व संभालने वाली सोनिया गांधी निर्वाचित हुई थी जबकि राजद नेता लालू प्रसाद यादव पराजित हो गए थे। सपा नेता मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश में दो सीटों पर विजयी हुए थे जबकि मेनका गांधी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीती थीं।


इस चुनाव में सात राष्ट्रीय पार्टियों, 40 राज्य स्तरीय पार्टियों तथा 122 निबंधित पार्टियों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। राष्ट्रीय पार्टियों ने कुल 1299 उम्मीदवार चुनाव लड़ाये थे जिनमें से 369 निर्वाचित हुए थे। राष्ट्रीय पार्टियों 67.11 प्रतिशत वोट आया था। राज्य स्तरीय पार्टियों 750 प्रत्याशी खड़े किये थे और पहली बार इन पार्टियों ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 158 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इन पार्टियों को लगभग 27 प्रतिशत वोट आए थे।


निबंधित पार्टियों के 654 उम्मीदवारों में से दस जीत गए थे। इस बार 1945 निर्दलीय उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था जिनमें से केवल छह जीत सके थे। लोकसभा की 543 सीटों के लिए हुए इस चुनाव में 61 करोड़ 95 लाख से अधिक मतदाताओं में से 59.99 प्रतिशत ने वोट डाले थे। चुनाव में कुल 4648 उम्मीदवारों ने 


अपना राजनीतिक भविष्य आजमाया था। राष्ट्रीय पार्टियों में शामिल जनता दल (एस) को केवल एक सीट आयी थी जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी चार सीटों पर सिमट गई थी। कांग्रेस ने 453 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसके 114 उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे। उसे 28.30 प्रतिशत वोट आया था।


भाजपा ने 339 सीटों पर चुनाव लड़ा। उसे 23.75 प्रतिशत वोट मिले और उसके 182 उम्मीदवार चुनाव जीत गये थे। भाकपा के 54 उम्मीदवारों में से चार चुने गये थे जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के 72 प्रत्याशियों में से 33 विजयी हुए थे। जनतादल (एस) के 96 में से एक और जनतादल (यू) के 60 में से 21 उम्मीदवार निर्वाचित हुए थे।


कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में दस, बिहार में चार, आन्ध्र प्रदेश में पांच, अरुणाचल प्रदेश में दो, असम में दस, गुजरात में छह, कर्नाटक में 18, केरल में आठ, मध्य प्रदेश में 11, महाराष्ट्र में दस, पंजाब में आठ, पश्चिम बंगाल में तीन,


राजस्थान में नौ, ओडिशा में दो, तमिलनाडु में दो तथा मेघालय,नागालैंड, चंडीगढ़ , दमन एवं दीव, लक्षद्वीप और पांडिचेरी में एक-एक सीट मिली थी। भाजपा को उत्तर प्रदेश में 29, बिहार में 23, आन्ध्र प्रदेश में सात, असम में दो, गोवा में दो, गुजरात में 20, हरियाणा में पांच, हिमाचल प्रदेश में तीन, जम्मू कश्मीर में दो, कर्नाटक में सात, मध्य प्रदेश में 29, महाराष्ट्र में 13, ओडिशा में नौ, पंजाब में एक, राजस्थान में 16, तमिलनाडु में चार, पश्चिम बंगाल में दो, अंडमान निकोबार में एक तथा दिल्ली में सात सीटें मिली थी।


भाकपा को पश्चिम बंगाल में तीन और पंजाब में एक सीट मिली थी। माकपा की स्थिति पश्चिम बंगाल में थोड़ी कमजोर हुयी थी और इस राज्य में उसे 21 सीटें मिली थी। इसके अलावा उसे केरल में आठ, त्रिपुरा में दो तथा बिहार और तमिलनाडु में एक-एक सीट मिली थी। जनतादल (एस) को महाराष्ट्र में एक तथा जनतादल (यू) को बिहार में 18 और कर्नाटक में तीन सीटें मिली थी।


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