दो साल से वेंटिलेटर पर थी महिला
फेफड़ों का ट्रांसप्लांट एम्स में किया गया जबकि दिल का मुंबई के जसलोक अस्पताल और लिवर का दिल्ली के इंस्टिट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइंसेज में। आर्मी हॉस्पिटल के ग्रुप कैप्टन सुमेश कायस्थ ने कहा कि यह पहली बार था जब ब्रेन डेड डोनर के फेफड़े लिए गए। उन्होंने कहा, ‘मरीज को सिस्टिक फाइब्रोसिस था जो फेफड़ों को डैमेज कर देता है, इस वजह से वह ठीक से सांस नहीं ले पा रही थीं। वह करीब दो साल तक नॉन-इनवेसिव वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहीं।’ AIIMS डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने बताया कि मरीज निगरानी में है। उन्होंने कहा कि अगले कुछ दिन क्रिटिकल हैं। गुलेरिया ने ट्रांसप्लांट सर्जरी करने वाले डॉक्टर्स को उनकी उपलब्धि पर बधाई दी।
लंग ट्रांसप्लांट करने वाला दूसरी सरकारी अस्पताल बना AIIMS
फेफड़ों की बीमारी के एंड स्टेज से जूझ रहे मरीजों का एक ही इलाज होता है- लंग ट्रांसप्लांट। इसकी डिमांड तेजी से बढ़ी है लेकिन उचित डोनर और ऑपरेशन के बाद देखभाल का खर्च ज्यादा होने की वजह से कम ट्रांसप्लांट ही होते हैं। दिल की तरह फेफड़ों का ट्रांसप्लांट भी किसी मृत डोनर के अंग से ही किया जाता है। अभी तक दुनियाभर में ऐसे 4,000 ऑपरेशन हुए हैं जिनमें से करीब 200 भारत में किए गए। AIIMS से पहले, भारत में केवल PGIMER ही ऐसा सरकारी संस्थान था जिसने लंग ट्रांसप्लांट किया था।
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मरीजों को नई उम्मीद मिली
प्राइवेट अस्पतालों में लंग ट्रांसप्लांट की लागत 20 से 30 लाख रुपये के बीच है। इसके बाद पूरी जिंदगी दवाइयां लेनी पड़ती हैं जिनपर हर साल लाखों रुपये खर्च होते हैं। AIIMS और PGI चंडीगढ़ जैसे सरकारी अस्पतालों में सर्जरी मुफ्त होती है। उनकी सफलता से एंड स्टेज बीमारियों के मरीजों को नई उम्मीद मिली है। AIIMS की योजना फॉलो-अप दवाएं भी मुफ्त में देने की है।