स्टडी ने बताया ट्रामा

एक स्टडी के अनुसार बच्चों को कम उम्र में बोर्डिंग स्कूल भेजना किसी सदमे जैसा हो सकता है। कई छोठे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर यह आघात की तरह लगता है। अचानक से अपने पैरेंट्स, भाई-बहनों, घर और खिलौनों से दूर होने पर बच्चा उदासी से घिर जाता है। बच्चे को बोर्डिंग स्कूल में घर जैसा प्यार और देखभाल नहीं मिलती है जिससे उसका मन दुखी रहता है।
फोटो साभार : TOI
घर जैसा कुछ नहीं होता

बोर्डिंग स्कूल घर से बिलकुल अलग होते हैं। परिवार और अपने करीबियों के साथ आप जिस तरह से रहते हैं, वो बोर्डिंग में अजनबियों के बीच बहुत मुश्किल होता है। भले ही वहां बच्चों की अच्छी देखभाल होती हो लेकिन उन्हें परिवार का प्यार नहीं मिल पाता है।
फिट नहीं हो पाते हैं

अपने बच्चे को बोर्डिंग स्कूल में भेजने का मतलब है उसे अलग-अलग पृष्ठभूमि, नस्ल, धर्म और मूल्यों वाले बच्चों के सामने रखना। आप उसे उन बच्चों के बीच भेज रहे हैं जिनकी आपके बच्चे से अलग मान्यताएं और रहन-सहन है।
जब तक आपका बच्चा सोशल स्किल्स ना सीख ले और दोस्त बनाने में कुशल ना हो जाए, तब तक उसे कुछ दिक्कतों के साथ रहना होगा।
जेल की तरह हैं बोर्डिंग

बोर्डिंग स्कूल बहुत सुरक्षित होते हैं लेकिन फिर भी यहां का माहौल कभी-कभी थोड़ा घुटन भरा हो सकता है। अगर बच्चे को बोर्डिंग स्कूल जेल जैसा लग रहा है तो इसका उसके मन पर बहुत बुरा असर पड़ता है। यहां भले ही दोस्त परिवार बन जाएं और सुख-दुख में साथ दें लेकिन उनका साथ छूटने का भी डर बच्चे के मन में बना रहता है।
फोटो साभार : TOI
नियम होते हैं सख्त

इस बात से तो आप भी सहमत होंगे कि बोर्डिंग स्कूल के नियम बहुत सख्त होते हैं और छोटे बच्चों के लिए इन्हें फॉलो करना मुश्किल काम है। वहीं इन नियमों के टूटने पर सजा मिलने का डर और इस डर से निकलने की एंग्जायटी और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण होती है।
फोटो साभार : Navbharat Times