देश और दुनिया के सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद एवं चिपको आंदोलन के प्रणेता स्वर्गीय सुंदर लाल बहुगुणा जी के सम्मान में दिल्ली विधानसभा भवन में उनके स्मारक और प्रतिमा का अनावरण कर दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल ने आज के कोरोना काल में एक ऐसे महान संत, गांधीवादी व पर्यावरणविद को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है जिसका पूरा जीवन पर्यावरण तथा प्रकृति की धरोहरों की रक्षा हेतु संघर्ष करने में व्यतीत हुआ।
पर्यावरण की रक्षा हेतु उनका योगदान पूरे विश्व के लिए सदैव प्रेरणादायी रहेगा। इसके अतिरिक्त दिल्ली विधानसभा परिसर में स्वर्गीय बहुगुणा जी के संघर्षपूर्ण जीवन की यादों को संजोती हुई एक 'स्मृति गैलरी' भी बनाई गई है। केजरीवाल ने बहुगुणा जी की प्रतिमा का अनावरण किया व उनकी स्मृति में वृक्षारोपण भी किया।
बहुगुणा जी सत्ता, आडंबर, स्वार्थपूर्ण राजनीति,सत्ता की चाटुकारिता जैसे सभी प्रपंचों से दूर प्रकृति से प्रेम व अंतरात्मा से पर्यावरण की रक्षा का संकल्प ले चुके एक ऐसे महामानव थे जिन्हें अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कार व सम्मानों के अतिरिक्त देश का सर्वोच्च पद्मश्री व पदम् विभूषण पुरस्कार भी मिला था।
स्व बहुगुणा जी ने 1987 में दिया गया पदम् श्री सम्मान तो इसलिए अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उनके द्वारा किये गए विरोध प्रदर्शनों के बावजूद सरकार ने टिहरी बाँध परियोजना को रोकने से इनकार कर दिया था।
पिछले दिनों देश में कोरोना संकट काल में ऑक्सीजन की कमी को लेकर जो कोहराम मचा उसे पूरी दुनिया ने देखा। जितना कोरोना संक्रमण ने विचलित किया था,ऑक्सीजन की कमी को लेकर उससे कहीं ज़्यादा हाहाकार मचा।
ठहरा मानसून, खरीफ फसलों पर संकट के बादलउस समय ऐसी सैकड़ों रिपोर्टस आईं कि ऑक्सीजन की कमी का सामना करने वाले मरीज़ों ने पेड़ों की छाया में आराम कर या बग़ीचों में जाकर शुद्ध प्रकृतिक ऑक्सीजन ग्रहण कर अपने शरीर के ऑक्सीजन स्तर को सामान्य किया और स्वास्थ्य लाभ उठाया।
और इसी संकट के बाद अब यह भी देखा जा रहा है कि पर्यावरण को लेकर आम लोगों में जागरूकता बढ़ी है। सरकारी,ग़ैर सरकारी,सामाजिक तथा निजी स्तर पर वृक्षारोपण के प्रति जागरूकता बढ़ी है तथा इस की मुहिम तेज़ हुई है। यहां तक कि लोगों ने अपने घरों में गमलों में पौधे लगाने तेज़ कर दिये हैं।
धर्मांतरण में लगा हैे हवाला का पैसा, एनजीओगोया विनाश रुपी विकास को ही वर्तमान समय का यथार्थ समझने की भूल करने वाले लोगों को अब यह एहसास हो चुका है कि उनके जीवन के लिये सबसे ज़रूरी तत्व ऑक्सीजन की भरपाई उद्योगों या सिलिंडर्स के ऑक्सीजन से नहीं बल्कि क़ुदरत द्वारा प्रदत्त शुद्ध हवा से ही संभव है और इसके लिए पर्यावरण की रक्षा व वृक्षारोपण सबसे महत्वपूर्ण है।
स्वर्गीय सुन्दर लाल बहुगुणा ने अपने पर्यावरण संरक्षण संबंधी संघर्षपूर्ण जीवन पर आधारित पुस्तक 'Fire in the heart-Fire wood on the back' जिस समय मुलाक़ात के दौरान मुझे भेंट की उस समय उस पुस्तक पर उनके हाथों से लिखी महत्वपूर्ण टिप्पणी- 'Yes to life no to death' का अर्थ वास्तव में पूरे देश को इसी वर्ष अप्रैल-मई के मध्य तब समझ आया जब ऑक्सीजन के बिना लोगों की मौत का आंकड़ा इतना बढ़ गया जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
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निश्चित रूप से यह उनकी दूरदर्शिता ही थी जिसकी वजह से उन्होंने पेड़ को काटने से बचाने के लिए 'चिपको आंदोलन' चलाया था। यह आंदोलन केवल भारत ही नहीं पूरे विश्व में पर्यावरण की रक्षा के लिए एक आदर्श आंदोलन बन गया था।
दुनिया के अनेक पर्यावरण प्रेमी पर्यावरण की रक्षा के मन्त्र लेने उनके पास आते जाते रहते थे। पर्यावरण के संबंध में बहुगुणा जी ने विदेशों की भी अनेक यात्राएं कीं व अपने व्याख्यान दिए। आज देश के इस सच्चे व महान सपूत को सच्ची श्रद्धांजलि देने सबसे अच्छा तरीक़ा यही है कि हम प्रकृति प्रेम से पहले मानव प्रेम करना सीखें।
और इसके लिए सबसे ज़रूरी है कि हम धर्म-जाति क्षेत्र-भाषा-रंग-भेद आदि सीमाओं व इनके कारण पैदा होने वाले तनाव,सांप्रदायिकता,जातिवाद,अति
जल को बर्बाद होने से रोकें। प्रदूषण फैलाने से बचें। यथासंभव पेड़ों का कटान रोकें। और प्रेम व सद्भाव की शजरकारी (वृक्षारोपण) करें।
इसी वर्ष गत 21 मई को 94 वर्ष की आयु में कोरोना संक्रमण के कारण हुए बहुगुणा जी के देहान्त के बाद दिल्ली सरकार द्वारा उनके परिजनों की मौजूदगी में महान पर्यवरणविद के 'चिपको आंदोलन' की याद दिलाने वाले स्मारक का लगाया जाना तथा विधान भवन में उनका चित्र स्थापित करना वास्तव में आज के कोरोना संक्रमण के दौर की सबसे बड़ी ज़रुरत भी है और प्रेरणा भी।
मुख्य मंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बहुगुणा जी को भारत रत्न देने की मांग भी की है। निःसंदेह वे भारत रत्न के सच्चे हक़दार थे और उन्हें भारत रत्न ज़रूर मिलना चाहिए। कुछ समय पूर्व मुझे अपने परिवार सहित इस महान संत के देहरादून स्थित निवास पर उनका दर्शन करने व कुछ घंटे उनके व उनकी समर्पित जीवन संगिनी आदरणीय विमला बहुगुणा जी के सानिध्य में बिताने का अवसर मिला।
आतंकवाद के आरोपियों द्वारा शहीदों का अपमान किया.....इस परिवार की महानता के जो क़िस्से प्रकाशित व प्रसारित होते हैं वे उससे कहीं महान थे। और इसका एहसास उन्हीं लोगों को हो सकता है जो कभी उनसे मिला हो। ख़ुद ज़मीन पर बैठकर अतिथि को कुर्सी पर बैठने को कहना,पास बैठने पर और क़रीब आने को कहना। ऐसा आग्रह करने वाला कोई दूसरा महान शख़्स कम से कम मैं ने तो अपने देश में नहीं देखा।
उनके बारे में जितना सुना व पढ़ा वे उससे भी कहीं अधिक 'बुलंद मरतबा' शख़्सियत थे। उच्च कोटि के ब्राह्मण परिवार के होकर भी दलितों के अधिकारों के लिए प्रथम पंक्ति में खड़े होकर संघर्ष करना, कश्मीर से कोहिमा तक पैदल पहाड़ी क्षेत्रों की यात्रा कर प्रकृति से रूबरू होना, जैसी अनेकानेक विशेषताओं को अपने आप में समाहित करने वाला व्यक्ति ही सुन्दर और लाल ही नहीं बल्कि इसका बहु (कई ) गुणा भी थे।
उनकी मानवीय व सामाजिक चेतना का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि एक उच्च कुलीन ब्राह्मण परिवार में पैदा होने के बावजूद वे भारत विशेषकर वर्तमान उत्तरांचल क्षेत्र में सदियों से चले आ रहे दलित उत्पीड़न के विरुद्ध एक सशक्त आवाज़ थे।
सीवेज सिस्टम में दोषपूर्ण पाइपलाइनों के कारण .....उन्होंने उस इलाक़े में अनेक मंदिरों में दलितों को प्रवेश न दिए जाने के विरुद्ध कई बार आंदोलन भी किया। उनका स्पष्ट मानना था कि मानव जाति में परस्पर प्रेम व सौहार्द्र के बिना पर्यावरण की रक्षा करने जैसे बड़े लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता। बहुगुणा जी नाम मात्र गांधीवादी नहीं बल्कि सही मायने में गाँधी जी की सत्य-शांति-सद्भाव-अहिंसा की नीतियों को स्वयं जीने व ताउम्र इसका प्रसार करने वाले 'आदर्श गांधीवाद' के महान सच्चे अलंबरदार थे।
बक़ौल 'ज़फ़र ज़ैदी' - इक शजर ऐसा मोहब्बत का लगाया जाये । जिस का हम-साये के आँगन में भी साया जाये ।।