तापमान का स्तर गिरने पर बढ़ती हैं रीढ़ संबंधी समस्याएं

- डॉ. अमिताभ गुप्ता -  

सर्दी का मौसम कब त्यौहारों के जश्न से दर्द में बदल जाता है, इसका अंदाजा ही नहीं लगता है। ठंड के मौसम में दर्द से राहत पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इस दौरान जोड़ों में लचक बनाए रखने और दर्द को गंभीर होने से रोकने के लिए ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। यह समस्या किसी एक उम्र तक ही सीमित नहीं है। 

वास्तव में, गतिहीन जीवनशैली के कारण आज हर उम्र का व्यत्ति इसका शिकार हो रहा है। इसमें केवल जोड़ों का दर्द ही नहीं, बल्कि मांसपेशियों का दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द, गर्दन दर्द, तंत्रिका दर्द, फाइब्रोमाइल्जिया आदि शामिल हैं, जो ठंड के मौसम में बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। दर्द और मौसम के बीच सीधा संबंध है, लेकिन चिकित्सक अभ्यासों में बार-बार देखे जाने के बावजूद वैज्ञानिक अध्यनों में बहुत ही कम लोग इस बात से सहमति रखते हैं।

कम तापमान, वायुमण्डलीय दबाव, प्रतिरक्षात्मक बदलाव, प्रभावित रक्त प्रवाह आदि को गिना तो गया है, लेकिन इन्हें पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है। जबकी कईं अध्यनों में यह पाया गया है कि ठंडे मौसम का दर्द पर गहरा असर पड़ता है। जबकी अन्य अध्यनों के अनुसार, हमारा शरीर ठंड के कारण नहीं बल्कि मौसम में बदलाव पर प्रतिक्रिया देता है।

सायटिक तंत्रिका दर्द, जिसे मेडिकल भाषा में सायटिका के नाम से जाना जाता है, इसमें पैर का दर्द शामिल है। ये दर्द कमर से शुरू होता है और फिर वूल्हों से होते हुए पैर तक पहुंच जाता है। दर्द पैर के पीछे की तरफ होता है।

आमतौर पर, सायटिका केवल एक पैर को ही प्रभावित करती है, जहां दर्द कमर से होते हुए पैर के नीचे पहुंच जाता है। ये दर्द पैर के अंगूठे तक पहुंच सकता है, लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि सायटिक तंत्रिका कहां तक प्रभावित हुईं है। इसलिए दर्द एक व्यक्ति से दूसरे में भिन्न हो सकता है।

इसके लक्षण हर व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं। एक मरीज गंभीर और असहनीय दर्द की शिकायत करता है तो दूसरे का दर्द कभी-कभी ही परेशान करता है।

हालांकि, ये दर्द भविष्य में और गंभीर हो सकता है इसलिए इसकी रोकथाम के लिए एक्सरसाइज के साथ आवश्यक तरीकों के बारे में जानकारी होना जरूरी है। लोगों में इस दर्द की भिन्नता के समान, सायटिका के वुछ लक्षण प्रकार, स्थान और गंभीरता के अनुसार भी भिन्न होते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि सायटिका को क्या प्रभावित कर रहा है। 

मरीजों को ऐसा भी महसूस होता सकता है जैसे कोईं उनके पैर में सुईंयां चुभा रहा है। हालांकि, स्थायी सायटिक तंत्रिका क्षति एक दुर्लभ स्थिति है, लेकिन जब ऐसा होता है तो इसके ठीक होने की संभावना न के बराबर होती है। इसलिए यदि किसी को अपने शरीर के निचले हिस्से में कमजोरी, ऊपरी जांघों का सुन्न होना और पेशाब-मल निकास में समस्या आदि महसूस हो रहा है तो जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें।

सायटिका के लक्षण सायटिका के सबसे आम लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं. एक पैर या कूल्हे के किसी एक तरफ दर्द का अनुभव।

बैठने, खांसने और छीकने पर दर्द गंभीर हो जाता है।

पैर हिलाने पर कमजोरी महसूस करना और पैर का सुन्न पड़ना।

-  पैर में जलन या झनझनाहट।

तेज दर्द जिसके कारण खड़े होने या बैठने में मुश्किल होना।

सायटिका का इलाज - यदि आपकी रीढ़ में र्हनिया की समस्या है, तो यह जरूरी नहीं कि आपको सर्जरी करवानी ही पड़ेगी।

ऐसे कईं मामलें हैं, जहां समय के साथ लक्षणों में सुधार आया है।

यहां तक कि सायटिका के 10 में से 9 मरीजों को सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती है। आमतौर पर, बचाव के तरीकों, दवाओं और विशेष एक्सरसाइज की मदद से दर्द से राहत पाईं जा सकती है।

बचाव: मरीजों को अचानक उठने-बैठने से बचना चाहिए क्योंकि इससे दर्द बढ़ सकता है। स्क्वाट्स करना, घुटनों पर बैठना, कमर मोड़ना, भारी वजन उठाना आदि गतिविधियों से बचना चाहिए।

एक्सरसाइज और फिजिकल थेरेपी: डॉक्टर आमतौर पर मरीज को एक खास एक्सरसाइज प्रोग्राम के बारे में बताते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सायटिका के मामले में बेड रेस्ट की जगह एक्सरसाइज समस्या में राहत देती है। इसलिए जब दर्द बहुत अधिक बढ़ जाए केवल तभी सिर्प एक या दो दिनों के लिए आराम करें।

आराम के बाद फिर से एक्सरसाइज शुरू कर दें। एक्सरसाइज दर्द को काफी हद तक कम करती हैं। इनकी मदद से भविष्य में यह समस्या आपको फिर से परेशान नहीं करेगी।

एक्सरसाइज की कमी से पीठ की मांसपेशियों और रीढ़ की लचक खत्म हो जाती है, जिसके कारण पीठ को उचित सपोर्ट मिलना बंद हो जाता है। यह रीढ़ की इंजरी का कारण बन सकता है, जो दर्द को और बढ़ा देगा।

एक्सरसाइज करने से उचित पोषण और तरल पदार्थ रीढ़ तक अच्छे से पहुंच पाते हैं और रीढ़ को स्ट्रेन या सायटिका के दर्द से बचाते हैं। जिन लोगों में सर्जरी की जरूरत पड़ती है, उनके लिए एंडोस्कोपिक या एंडोपोर्टल डिकम्प्रेशन एक अच्छा विकल्प है।

इस प्रक्रिया में कवल 30 मिनट का समय लगता है और मरीज को अस्पताल में केवल 24 घंटों के लिए रहना पड़ता है। इसमें केवल 1-2 सेंटिमीटर छोटा चीरा लगाया जाता है, जिसकी मदद से डॉक्टर स्लिप्ड डिस्क या स्पाइनल स्टेनोसिस के कारण नसों पर पड़ रहे दबाव को खत्म करता है। 

सर्जरी इलाज का आखरी विकल्प माना जाता है, जहां डॉक्टर पहले हर संभव तरीकों और टेस्टों की मदद से समस्या को ठीक करने की कोशिश करता है। यदि इसके बावजूद समस्या में राहत नहीं है तो वह आपको सर्जरी की सलाह देगा। नसों की क्षति से बचाव के लिए दर्द महसूस होने पर जल्द से जल्द किसी न्यूरोसर्जन से संपर्क करें।

वास्तव में गतिहीन जीवनशैली के कारण आज हर उम्र का व्यत्ति इसका शिकार हो रहा है। इसमें केवल जोड़ों का दर्द ही नहीं, बल्कि मांसपेशियों का दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द, गर्दन दर्द, तंत्रिका दर्द, फाइब्रोमाइल्जिया आदि शामिल हैं, जो ठंड के मौसम में बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं। 

दर्द और मौसम के बीच सीधा संबंध है, लेकिन चिकित्सक अयासों में बारबार देखे जाने के बावजूद वैज्ञानिक अध्यनों में बहुत ही कम लोग इस बात से सहमति रखते हैं। कम तापमान, वायुमण्डलीय दबाव, प्रतिरक्षात्मक बदलाव, प्रभावित रत्त प्रवाह आदि को गिना तो गया है, लेकिन इन्हें पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है।


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