किसान आंदोलन : न ठंड की चिंता न कोरोना वायरस का डर

किसान आंदोलन : सौर ऊर्जा पैनलों से चार्ज किए जा रहे हैं मोबाइल,  हाई-वे बना किसानों के लिए नया घर
- सड़क पर खड़े है 500 से अधिक ट्रैक्टर -

सिंधु बॉर्डर पर 300 से ज्यादा किसान बीमार, कोरोना जाँच से किया इंकार
सिंधु बॉर्डर पर डटे किसानो में से 300 से ज्यादा किसानो को बुखार, जुखाम और खांसी है, लेकिन उन्होंने कोरोना जांच कराने से इंकार किया 

नई दिल्ली, केन्द्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे किसानों के प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली की टीकरी बॉर्डर किसी पिंड (गांव) की तरह दिखाई दे रहा है। कहीं ट्रैक्टरों पर तंबू लगे हैं, तो कहीं खाना बनाने के लिये सब्जियां काटी जा रही हैं। कहीं सौर ऊर्जा पैनलों से मोबाइल चार्ज किये जा रहे हैं तो कहीं चिकित्सा शिविर लगे दिखाई दे रहे हैं। 

यहां अधिकतर किसान पड़ोसी राज्य पंजाब से आए हैं, जो केन्द्र सरकार से तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। पंजाब के मनसा जिले से आए 50 वर्षीय गुरनाम सिंह कहते हैं, निकट भविष्य में यही हमारा घर बनने वाला है क्योंकि यह लड़ाई लंबी चलने वाली है। हम यहीं डटे रहेंगे। उन्होंने कहा कि हमारे पास हर चीज काफी मात्रा में है। 

कम से कम छह महीने का पर्याप्त राशन-पानी है। डॉक्टरों ने चिकित्सा शिविर लगाए नौ दिन पहले दिल्ली को सीमा पर पहुंचे ये किसान तब से हर दिन लंगर लगाकर स्थानीय लोगों तथा प्रदर्शन स्थल पर आने वाले लोगों समेत 5,000 लोगों को खाना खिला रहे हैं। कड़ाके की ठंड के बीच प्रदर्शन स्थल पर इटे किसानों के लिये डॉक्टरों ने चिकित्सा शिविर लगाए हैं। 

यहां कुछ ही लोग मास्क लगा रहे हैं तथा भौतिक दूरी का पालन कर रहे हैं। ऐसे में कोरोना वायरस संक्रमण फैलने का खतरा भी मंडरा रहा है। लेकिन इससे प्रदर्शनकारियों पर कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा। छब्बीस नवंबर को अपने घर से निकाले गुरनाम ने कहा कि उन्हें टीकरी बॉर्डर पर पहुंचते ही सीने में दर्द हुआ। 

इसके बाद उन्हें राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद वह प्रदर्शनकारियों के बीच लौट आए। गुरनाम ने कहा कि हम पंजाब से हैं। जहां भी जाते हैं, प्यार आंटते हैं। न तो कोरोना वायरस और न ही ठंड हमें हमारी लड़ाई लड़ने से रोक पाएगी। अपने ट्रैक्टर में आराम कर रहे राम सिंह भी मनसा से हैं। 

उन्होंने कहा कि जब तक कृषि कानूनों को निरस्त नहीं कर दिया जाता, तब तक यह और उनके बुजर्गचाचा वापस नहीं जाने वाले। राम ने कहा कि उन्हें अपने गांववालों का पूरा समर्थन हामिल है। टीकरी बॉर्डर पर अस्थायी शौचालय भी बनाए गए हैं। 

किसानों ने खुद को मिल रही मदद के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि लोगों ने हमारे लिये न केवल अपने घर के बल्कि दिलों के दरवाजे भी खोले है। दरअसल केन्द्र सरकार ने सितंबर में तीन कृषि कानूनों को मंजूरी दी थी। 

सरकार का कहना है कि इन कानूनों का मकसद विचौलियों को खत्म करके किमानों को देश में कहीं भी अपनी फसल बेचने की अनुमति देकर कृषि क्षेत्र में सुधार लाना है। किसानों को चिंता है कि इन कानूनी से उनको सुरक्षा कवच मानी जानी वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व्यवस्था और मंडियां खत्म हो जाएंगी। 

सरकार का कहना है कि एमएसपी जारी रहेगी और नए कानूनों से किसानों को अपनी फसल बेचने के और विकल्प उपलब्ध होंगे। इस बीच उन्होंने आठ दिसंबर को भारत बंद का भी आह्वान किया है।

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