एक्सपर्ट ने कहा - वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना हो गया, यह कहना उचित नहीं

 एक्सपर्ट ने कहा - वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना हो गया, यह कहना उचित नहीं

एक्सपर्ट ने कहा - वैक्सीन लगाने के बाद कोरोना हो गया, यह कहना उचित नहीं

वैक्सीन के ट्रायल में - हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री के पॉजिटिव होने पर उठे सवाल, एक्सपर्ट ने बताया, ट्रायल में शामिल किसी को पता नहीं होता है कि वैक्सीन दी या प्लेसिबो

नई दिल्ली: कोविड महामारी के दौरान अब सारी उम्मीदें वैक्सीन पर टिकी हुई है। लेकिन, देश में तैयार किए गए वैक्सीन के ट्रायल में शामिल होने के कुछ दिनों बाद ही हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का कोविड पॉजिटिव पाए जाने से कई सवाल और संदेह पैदा हो रहे हैं। 

लेकिन एक्सपर्ट का कहना है कि वैक्सीन लेने के वाद कोविड हो गया, यह कहना सही नहीं है, इससे संदेह पैदा होता है। हां, कहा जा सकता है कि ट्रायल में शामिल होने के वाद उन्हें कोविड हो गया। लेकिन, इससे कहीं पर ही वैक्सीन पर सवाल उठाना सही नहीं है। 

एक्सपर्ट का कहना है कि ट्रायल में शामिल होने भर से यह जरूरी नहीं है कि उन्हें वैक्सीन ही दी गई हो, यही नहीं वैक्सीन दो डोज का है और दोनों डोज दिए जाने के 3 से 4 हफ्ते के बाद प्रोटेक्शन मिलता है। यह नियम हर वैक्सीन में लागू होता है। इसलिए, वैक्सीन के सेफ्टी पर सवाल उठाना सही नहीं है। 

एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर एम सी मिश्रा खुद शनिवार को इस वैक्सीन के ट्रायल में शामिल हुए। उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि मुझे वैक्सीन दिया गया या प्लेसिवो। बता दें कि प्लेसिवो विल्कल वैक्सीन की तरह ही दिखता है लेकिन वैक्सीन नहीं होता है। इसलिए यह कहना कि वैक्सीन के वाद कोविड हो गया, यह संदेह पैदा करता है। 

उन्होंने कहा कि ट्रायल में शामिल किसी को नहीं पता होता है कि उन्हें वैक्सीन दिया गया है या प्लेसिवोवहीं, एम्स के कोवैक्सीन के ट्रायल के प्रिंसिपल इनवेस्टिगेटर डॉक्टर संजय राय ने बताया कि सबसे पहले वैक्सीन के ट्रायल को समझना जरूरी है। 

ट्रायल इसलिए किया जाता है ताकि सेफ्टी का सही आकलन किया जा सके। इसके लिए ट्रायल में शामिल लोगों को दो ग्रुप में बांटा जाता है। एक ग्रुप को वैक्सीन दी जाती है और दूसरे ग्रुप को प्लेसिबो दी जाती है। यह ब्लाइंड ट्रायल होता है। 

कंप्यूटर से जारी नंबर से टीका मिलता है, इसमें जो लोग ट्रायल कर रहे हैं, उन्हें भी पता नहीं होता कि जो वैक्सीन दे रहे वह वैक्सीन है या प्लेसिबो। इसलिए, अगर कोई कहता है कि उन्हें वैक्सीन दी है तो यह पूरी तरह से सही नहीं है। 

इसलिए इसका दावा करना सही नहीं है। डॉक्टर संजय राय ने बताया कि यही वजह है कि ट्रायल में शामिल दोनों ग्रुप फॉलोअप भी उसी तरह से होता है। लेकिन जब रिजल्ट आता है, तब हमें यह पता चलता है कि किसमें वैक्सीन थी और किसमें प्लेसिबो। 

उन्होंने कहा कि कोई वैक्सीन उस खास बीमारी के खिलाफ बॉडी में इम्युनिटी पैदा करती है, उसके एक्टिव होने के बाद ही प्रोटेक्शन मिलती । उन्होंने ने कहा कि वैक्सीन दिए जाने बाद भी एंटीबॉडी बनने में समय लगता और जब तक एंटीबॉडी नहीं बन जाती तब तक बचाव जरूरी है।

'दो डोज के बाद शरीर में बनती है एंटीबॉडी' - 

कोरोना वैक्सीन की ट्रायल डोज लेने वाले हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज कोरोना की चपेट में आ गए हैं। इस मसले पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि भारत वायोटेक और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च द्वारा तैयार की गई कोवैक्सीन की दो डोज लेने के वाद ही शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज वनती हैं। 

विज ने 20 नवंवर को ही वैक्सीन की पहली डोज ली थी। इस कारण उनके शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज नहीं बन पाईं थीं। इस मामले में भारत वायोटेक ने कहा है कि इस वैक्सीन की दूसरी डोज लेने के 14 दिन बाद एंटीवॉडीज बननी शुरू होती हैं। इस वैक्सीन की दो डोज लिया जाना इस स्वदेशी वैक्सीन को कोरोना के डेड वायरस से बनाया गया है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, अभी यह कहना जरूरी है गलत है कि वैक्सीन कारगर नहीं है। बिना पूरी डोज लिए किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा जा सकता है। विज को रोहतक के मेडिकल कॉलेज में वैक्सीन की डोज दी गई थी। 

कोवैक्सीन का इस समय देश में तीसरे दौर का क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है। इसमें शामिल 50 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन और 50 प्रतिशत को प्लैसिबो (सेलाइन वॉटर) दिया जा रहा है।

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