खांसी का खात्मा -
वैसे तो हल्की -फुल्की खांसी को हम ज्यादा गंभीरता से नहीं लेते थेलेकिन जब से कोरोना आया है तब से माधुरी दीक्षित की फिल्म 'हम आपके हैं कौन' के स्टाइल (ऊहू-ऊहू) में खांसने पर भी लोगों के कान खड़े हो जाते हैं और खांसने वाले को सफाई देनी पड़ती है।
इन दिनों खांसी को लेकर लोगों के मन में कई सवाल उठते हैं जिनके जवाब पाना जरूरी हैं, जैसे- खांसी किन वजहों से होती है, खांसी और कोरोना वाली खांसी में क्या फर्क है? ऐसे ही सवालों के जवाब एक्सपर्ट्स से लेने के बाद बता रहे हैं, खांसी की वजहें वैसे तो कई हो सकती हैं।
लेकिन यह सीधी सांस लेने की पूरी प्रक्रिया से जुड़ी है। जब हम नाक के तो हवा इन सुराखों के वाद हड्डियों में मौजूद पॉकेट यानी साइनस (नाक के अंदर ऊपरी हिस्सा) में पहुंचती है। यहीं पर शरीर हवा के तापमान को शरीर अपनी जरूरत के हिसाब से क्दल लेता है, यानी आजकल कम तापमान को ज्यादा करता है।
कई वार जव साइनस में इन्फेक्शन हो जाता है तो साइनोसाइटस की परेशानी हो जाती है। यह परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है तो क्रॉनिक मानी जाती है। इससे एक तरह का गोला बन जाता है, जिसे 'पॉलिप' कहते हैं। इसे ऑपरेशन के बाद निकाला जाता है। साइनस के वाद हवा गले में उतरत है, जहां यह यानी विंड पाइप में पहुंचती है।
इसके बाद यह लंग्स से जड़ने वाले पतले पाइप 'ब्रॉन्की में पहुंचती है। फिर लंग्स छोटे वलूस यानी अलवियोलाई में। इस पूरे रास्ते में अगर हवा में खरावी हो या हवा के गुजरने वाले रास्ते में समस्या हो तो परेशान खांसी के रूप में सामने आती है। खांसी सूखे या वलगम वाली भी हो सकती है। कई वार यह बुखार और सिर दर्द के साथ भी होती है।
#खांसी होने की वजहें और लक्षण-
जुकाम यानी कॉमन कोल्ड वाली खांसी-जुकाम, बुखार की शिकायत, होन पर सूखी खांसी मुमकिन है। यह ज्यादा पलूशन की वजह से भी हो सकती है। अमूमन इसमें नाक से पानी, छोंक आती है। यह समस्या ज्यादातर नाक और गले से ही जुड़ी होती है। इसमें ज्यादातर न्यूमोनिया के लक्षण नहीं होते। सांस फूलने को परेशानी भी नहीं होती।
साइनस-
सिर दर्द और सूखी या कफ वाली खांसी। इसे साइनोसाइटिस भी कहते हैं। इसमें साइनस में इन्फेक्शन और सूजन आ जाती है।
गला (फेरिंग्स) खराब -
इसमें सूखी खांसी होती है, चूंकि इसकी शुरुआत गले यानी यहां मौजूद फेरिंग्स से होती है, इसलिए इसे फेरिजाइटिस भी कहते हैं। इसमें गले में सूजन हो जाती है।
गले से नीचे लेरिंग्स में सूजन- इसे लेरिजाइटिस भी कहते हैं। बलगम वाली खांसी की शुरुआत यहीं से होती है। आवाज सही तरीके से नहीं निकलती । गले में कुछ फंसा हुआ महसूस होता है।
ट्रेकिया में इन्फेक्शन- इसमें खांसी होने पर 'कुते के भौंकने' जैसी आवाज आती है। कई बार बलगम भी आता है। उंगली से छाती का ऊपरी हिस्सा और गर्दन को नीचे का हिस्सा दबाने पर दर्द होता है। अगर इन्फेक्शन गंभीर है तो कई बार ट्रेकिया के करीब मौजूद लिंफनोड में सूजन आ जाती है, जिससे गांठ बनने लगती है। जब डॉक्टर मरीज के सीने को जांचने के लिए दबाते हैं तो वहां दर्द महसूस होता है और खांसी आने लगती है। इसकी जांच को पुख्ता करने के लिए एक्सरे और सीटी स्कैन की जरूरत पड़ती है।
फेफड़ों में इन्फेक्शन-
फेफड़ों में होने वाला ज्यादातर इन्फेक्शन निमोनिया होता है। यह बैक्टीरिया और वायरल दोनों तरह का होता है। इसमें बलगम वाली खांसी होती है। यह कई दिनों या हफ्तों तक हो सकती है। इसमें इन्फेक्शन पैदा करने वाले वायरस या बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए ऐसेंटेबॉयोटिक दवा लेनी पड़ती है।
कोरोना वायरस की वजह से भी फेफड़ों में इन्फेक्शन होता है। यह भी एक तरह का निमोनिया ही है। चूंकि कोरोना वायरस को खत्म करने के लिए कोई दवा नहीं है, इसलिए यह खतरनाक है।
कोरोना-
आमतौर पर हल्के बुखार के साथ, वैसे बिना बुखार के भी संभव है। अगर कोरोना के लक्षण गंभीर नहीं हैं और सांस की समस्या नहीं हुई है तो सूखी खांसी हो सकती है। लेकिन इन्फेक्शन गंभीर हो गया है, निमोनिया वाले लक्षण आ गए हैं तो बलगम भी आ सकता है। पोस्ट कोविड यानी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद भी खांसी की शिकायत देखने को मिलती है। यह कई हफ्तों तक रह सकती है। ज्यादातर बलगम वाली खांसी होती है, कुछ लोगों को सूखी खांसी भी होती है।
ड्रामा - यह बिना मौसम के भी होती है, लेकिन पलूशन बढ़ने या मौसम बदलने पर ज्यादा होने लगती है। यह एक बार शुरू होती है तो लगातार होती रहती है। आमतौर पर बलगम वली खांसी होती है। यह ट्रेकिया और उसके छोटे ट्यूब में सिकुड़न की वजह से होती है। इसमें छाती से सांय-सांय को आवाज आती है। सांस लेने में परेशानी होती है।
टीबी- इस बीमारी में सबसे ज्यादा फेफड़े प्रभावित होते हैं। इसका शुरुआती लक्षण खांसी ही है। इसमें पहले सूखी खांसी होती है। बाद में गंभीर होने पर खांसी के साथ बलगम और खून भी आने लगता है। अगर 14 दिनों या उससे ज्यादा समय तक खांसी लगातार रहे तो टीबी की जांच करा लेनी चाहिए। टीबी की वजह से फेफड़ों में पानी भी भर जाता है।
एलर्जी की वजह से- यह खांसी मौसम के अनुसार नहीं होती। यह किसी भी मौसम में हो सकती है। यह बलगम वाली खांसी हो सकती है, बार-बार छींक आती है, नाक से पानी झड़ता है। दरअसल, यह किसी खास तरह की गंध वजह से हो सकती है। यह अस्थायी होती है। अगर हम उस जगह से हट जाएं या जिस वजह से एलर्जी होती है या उसे हटा दें तो खांसी रुक जाती है। यह पलूशन में मौजूद धूल की वजह से, फूलों में मौजूद पराग कणों, नए कपड़ों आदि किसी भी वजह से हो सकती है।
एसिड रिफ्लेक्शन-
सुनने में यह भले ही अजीब लगे, लेकिन कई बार हमारे ज्यादा तेल-मसाले, देर से खाने, खाने का निश्चित समय तय नहीं करने आदि की वजह से भी खांसी की परेशानी हो जाती है। दरअसल, इस वजह से हमारी पाचन क्रिया प्रभावित होती है और शरीर खाना पचाने के लिए ज्यादा मात्रा में एसिड निकालता है।
यह एसिड कई बार पेट से ऊपर गले तक पहुंच जाता है। इससे खांसी होने लगती है। इससे सांस लेने में भी कई बार परेशानी आती है। इनके अलावा हार्ट की समस्या, हाई बीपी या सिगरेट ज्यादा पोने से भी खांसी हो सकती है।
सभी तरह की खांसी का इलाज और सावधानी-
कॉमन कोल्ड वाली खांसी को छोड़ दें तो बाको किसी भी वजह से खांसी होने पर या जो लक्षण ऊपर बताए गए हैं, वे मौजूद हों तो डॉक्टर से ही इलाज कराएं। न गूगल की मदद से दवा लें और न मेडिकल स्टोर से पूछकर । दरअसल, खांसो किसी इन्फेक्शन का सिर्फ एक लक्षण है।
हम खांसी की दवा गूगल करके या मेडिकल स्टोर से पूछकर ले लेते हैं जबकि इन्फेक्शन का इलाज नहीं करते। इससे खांसी तो दब जाती है, इन्फेक्शन बढ़ने का खतरा बन रहता है। बाद में यह ज्यादा नुकसान करता है। खांसी 2 हफ्ते से ज्यादा खिंच जाए तो डॉक्टर को दिखाएं।
सभी तरह की खांसी में ऐसे राहत- दिनभर गुनगुना पानी पीना - हर दिन 2 से 3 लीटर पानी पीना चाहिए, शरीर में पानी की कमी न हो . ठंडी चीजें खाने से बचना और ठंडी हवाओं से शरीर को बचाना . ज्यादा तली हुई और मसाले वाली चीजों से बचना - सर्दियों में अदरक, लौंग, काली मिर्च, कच्ची हल्दी, मुलैठी आदि को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीना।