जानिए राहु केतु के बारे में

जानिए राहु केतु के बारे में

राहु-केतु का महारहस्य - 
 राहु-केतु को खुश करने के उपाय -

असुर शब्द ऋग्वेद में लगभग सौ से अधिक बार आया है. नब्बे बार यह सकारात्मक रूप में प्रयुक्त हुआ और और बहुत कम जगह यह देवों के विरोधी के रूप में इस्तेमाल हुआ. सामान्य रूप में समझें तो 'असुर' शब्द एक विशिष्ट शक्ति का द्योतक है, पर न जाने कब सुर यानी देवताओं के विरोधियों को असुर कहा गया. 

कुछ मान्यताओं के अनुसार, सुर यानी सुराका सेवन करने वाला और असुर अर्थात् सुरा को अग्राह्य समझने वाला. पर कालांतर में न जाने कब असुर नकारात्मक तमगों सेलद करनकारात्मकता के प्रतीक पुरुष के रूप में जबरन स्थापित कर दिया गया! कई ग्रंथों में असुरों को तो बार बार उत्कृष्ट गुणों से युक्त, शक्तिशाली, और अर्धदवों के अलंकार से भी नवाजा गया. सदगुणों वाले असुर अदित्य कहलाये और दुर्गुण वाले दानव. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा ही एक असुर था - स्वरभानु, जो बेहद शक्तिशाली था. उसकी बौद्धिक क्षमता और कौशल बेमिसाल थी. 

आला दर्जे का साधक था वह. शिव का उपासक भी था और कृपा पात्र भी, क्योंकि वह अपने लक्ष्य के प्रति सतर्पत था. धनुर्धर हो न हो, पर द्वापर के अर्जुन से अनंतों युगों पहले का 'अर्जुन' था वह. यहां अर्जुन से आशय है अपने लक्ष्य पर केंद्रित. फलस्वरूप स्वरभानु ने कई अद्वितीय और विलक्षण आंतरिक क्षमताएं हासिल कर ली थीं. उसे उम्दा दर्जे का सेनापति भी माना जाता था. 

देवों में भी उसकी अच्छी पैठ थी. उसके बाहुबल का देव सेनापति मंगल भी लोहा मानते थे, पर उसके चातुर्य से उसे इर्ष्या थी, क्योंकि बल और चातुर्य के समागम के कारण मंगल उसके आगे कहीं ठहरते नहीं थे. ऐतिहासिक सूत्र बताते हैं कि स्वरभानु की पुत्री प्रभा का विवाह पुरुवस और उर्वशी के ज्येष्ठ पुत्र आयु से हुआ, जिनसे पांच पुत्र हुए- नहुष, क्षत्रवृत या वृदशर्मा, राजभया गय, रजि और अनेना. प्रथम नहुष का विवाह विरजा से हुआ जिससे अनेक पुत्र हुए, जिनमें ययाति, संयाति, अयाति, अयति और ध्रुव प्रमुख थे. 

इन पुत्रों में यति और ययाति चक्रवर्ती सम्राट बनें. समुद्र मंथन से पहले ही स्वरभानु को देवों की नीयत पर संदेह हो गया था. जब समुद्र मंथन हुआ तब स्वरभानु ने छल का प्रत्युत्तर लिए कामयाब तो हुआ पर सूर्य-चंद्रमा ने उसे देवों की पंक्ति में पहचान कर तत्काल विष्णु को सूचित किया जो उस वक्त मोहिनी अवतार में थे. पर तब तक वह अमृत की कुछ बूंदे गटक चुका था.

विष्णु ने सुदर्शन चक्र से उसका सर धड़ से पृथक कर दिया, परंतु तब तक स्वरभानु अमृत के प्रभाव से अनश्वर हो चुका था और उसका सिर राहु और धड़ केतु के रूप में सृष्टि का अमिट हिस्सा बन गया. अब स्वरभानु अपनी आंतरिक और बाह्य सामर्थ्य के कारण नौ ग्रहों में राहु-केतु के रूप में शक्ति के दो केंद्रों के रूप में शुमार हैं. सूर्य-चंद्र की चुगलखोरी के कारण राहु-केतु उन्हें अपना कट्टर शत्रु मानते हैं और बुध के आश्रय के कारण बुध उनके परम मित्रों में शामिल है. 

राहु और केतु सूर्य वचंद्र के परिक्रमा पथों के आपस में काटने के दो बिंदुओं के प्रतीक हैं, जो पृथ्वी के सापेक्ष एक-दूसरे से 180 डिग्री विपरीत हैं. ये किसी खगोलीय पिंड के रूप में मौजूद नहीं हैं, इसलिए ये द्रष्टि की सीमा से परे हैं और छाया ग्रह कहलाते हैं. पाश्चात्य जगत राहु-केतु को ही उत्तरी एवं दक्षिणी लूनर नोड कहता है.

राहु का उपाय - 

ससुराल से मधुर संबंध रखें.ललाट पर चंदन का तिलक लगाएं. ठोस चांदी का हाथी व पास रखें तांबे के 43 दुकड़े व लकड़ी का कोयला जल प्रवाहित करें. काले कुत्ते को मीठी रोटियां खिलाएं. दान : शनिवार को कंबल व मूली का दान करें. 卐 राहु मंत्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नमः॥

केतु का उपाय - 

संतान से मधुर संबंध रखें. श्वान कोदो रंगरोटी खिलाएं. कान छिदवाएं. चांदी की डिब्बी में पवित्र नदी का जलव चांदी का एक चौकोर टुकड़ा रखें. जल को सूखने न दें. 卐 दान : मंगलवार को काले कपड़े का दान करें. 43 दिनों तक गाजर या मूली सिरहाने रख कर सुबह दान कर दें. 卐 केतु मंत्र : ऊँ स्त्रां स्त्री स्त्रौं स: केतवे नमः॥

उदर रोग प्रदान करता है राहु -

ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, राहु जिसकी कल्पना बिना धड़ वाले सर्प के रूप में की जाती है, वह आठश्याम वर्णी श्वानों द्वारा संचालित विशिष्ट रथ पर विराजमान और चलायमान है. कराली इसकी अर्धागिनी है. आद्रा, स्वाति और शतभिषा नक्षत्रों का स्वामी है राहु. यह मस्तिष्क के बायें हिस्से को नियंत्रित करता है और तर्क, बुद्धि, गणित, चातुर्य, रणनीति साहित्य, दर्शन, विज्ञान, शासन, सत्ता और बौद्धिक कुशलता का कारक है.

राहु को मान्यताओं ने निम्न विचारक, स्वार्थी, कपटी, धोखेबाज और जुगाडू राजनीतिज्ञ माना है. यह डरावने सपने, शत्रुओं की अधिकता, तंत्र-मंत्र, हलाहल मदिरा और ड्रग्स जैसे नशे के कारोबार का भी कारक माना जाता है. ज्योतिष में राहु को मित्र बनाने के कौशल में पारंगत कहा गया है. यह उदर कष्ट, अल्सर, एसिडिटी और पिंडलियों में दर्द प्रदान करता है.राहु निर्वासन काभीकारक है. विदेशों में बसने की परिस्थिति इसी के कारण निर्मित होती है. पूरे दिन में 24 मिनट की एक मुहूर्त की अवधि को 'राहुकाल' कहते हैं, जो मान्यताओं के अनुसार शुभ नहीं है.

कहते हैं कि पुरानी शत्रुता के कारण जब राहु सूर्य को अपना शिकार बनाता है, तो ग्रहण लगता है. पर इस मान्यता में अवश्य ही कोई अज्ञात वैज्ञानिक सूत्र छिया होगा. राहु स्वयं से 180 डिग्री पर चल रहे केतु के साथ मिलकर कालसर्प योग का भी सृजन करता है, जो सकारात्मक होने पर अर्श पर बिठा देती है और नकारात्मक हो जाये, तो धूल में मिलाने का दम रखती है.

प्रतिष्ठा का परिचायक है केतु-

मान्यताएं कहती हैं कि केतु विशिष्ट शक्ति से युक्त ग्रह है, जिसके सिर के स्थान पर उपस्थित एक खास रत्न या तारे में से रहस्यमयी प्रकाश प्रस्फुटित होकर सृष्टि को कवच प्रदान कर रहा है. ज्योतिषीय धारणाओं के अनुसार, स्वरभानु का सिर विहीन देह 'केत' कहलाया. सृष्टि और जीवों पर इसका व्यापक प्रभाव पाया गया है. यह ग्रह शक्ति, सामर्थ्य, दृढ़ता एवं प्रतिष्ठा का परिचायक है. इसका वजूद स्थूल रूप में न होकर छाया स्वरूप है. इसकी सवारी चील है. अर्धांगिनी चित्रलेखा है. केतु की प्रवृत्ति आंतरिक, आध्यात्मिक और रहस्यवादी है. 

इसका संबंध विष्णु के मत्स्य अवतार से माना गया है. जब यह मनुष्य को बाह्य रूप से सुसज्जित करता है, तो भौतिक आनंद और पदार्थ के सुख से सराबोर कर देता है, पर जब अंतर्यात्रा की ओर जाता है, तो भौतिकता में कमी कर आंतरिक गुणों से ओतप्रोत कर देता है, अपार आध्यात्मिकता देता है. सकारात्मक होने पर यह स्वास्थ्य, धन-संपदा व पशु संपदा दिलाता है. केतु किसी के प्रति भक्ति और समर्पण रखने वाले को अपार समृद्धि प्रदान करता है. मनुष्य के शरीर में केतु अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करता है. 

इसे मानव शरीर में उदर के निचले भाग तथा पैरों मे तलवों में स्थान हासिल है. यह ग्रह मस्तिष्क के दाहिने हिस्से को नियंत्रित करता है और अंतर्दृष्टि, कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता, ज्ञान, वैराग्य, विक्षोभ, कल्पना, मर्मज्ञता और अंतर्दृष्टि का कारक है.किसी प्रकार के विष और जहरीले सर्पदंश से मुक्ति सिर्फ केतु ही दे सकता है.यह अश्विनी, मघा एवं मूल नक्षत्रों का मालिक है. वैज्ञानिकों ने इसे दक्षिणी लूनर नोड कहा है. कहीं-कहीं इसे लेविटेशन भी माना है.


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