संत महात्माओं का सत्संग-1

संत महात्माओ गयी प्रचलित साखियाँ  
- अटल क़ानून -
जेहा बीजै सो लणे करमा संदड़ा खेतु ।
- गुरु अर्जुन देव -

रामायण में आता है कि बाली ने तपस्या करके वर लिया था कि जो भी लड़ने के लिए उसके सामने आये, उसका आधा बल बाली में आ जाये। इसी कारण जब भी सुग्रीव उससे लड़ाई करने जाता, पराजित होकर लौटता। इस तरह बाली की शक्ति हमेशा बढ़ जाती जब कि उसके दुश्मन की ताक़त क्षीण हो जाती।

रामचन्द्र जी महाराज को इस भेद का पता था। जब सुग्रीव बाली के ख़िलाफ़ मदद लेने उनके पास आया तो अपना बल सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने पेड़ों की ओट में खड़े होकर बाली पर तीर चलाया और उसे मार डाला। मरते समय बाली ने रामचन्द्र जी महाराज से कहा, "मैं बेक़सूर था, मैंने आपका कुछ नहीं बिगाड़ा था। अब इसका हिसाब आपको अगले जन्म में देना पड़ेगा।"

सो अगले जन्म में रामचन्द्र जी कृष्ण महाराज बने और बाली भील बना। जब कृष्ण महाराज महाभारत के युद्ध के बाद एक दिन जंगल में पाँव पर पाँव रखकर सो रहे थे, तो भील ने दूर से समझा कि कोई हिरन है, क्योंकि उनके पैर में पद्म का चिह्न था जो धूप में चमककर हिरन की आँख जैसा लग रहा था। उसने तीर-कमान उठाया और निशाना बाँधकर तीर छोड़ा जो कृष्ण महाराज को लगा। 

जब भील अपना शिकार उठाने के लिए पास आया तो उसे अपनी भयंकर भूल का पता चला। दोनों हाथ जोड़कर वह श्री कृष्ण जी से अपने घोर पाप की क्षमा माँगने लगा। उसी समय कृष्ण महाराज ने उसे पिछले जन्म की घटना सुनायी और समझाया कि इसमें उसका कोई दोष नहीं था, यह तो होना ही था। उन्हें अपने कर्मों का क़र्जा चुकाना ही था। कर्मों का क़ानून अटल है। कोई भी इससे बच नहीं सकता, अवतारी पुरुष भी नहीं।


विरह-वेदना - 

प्रभात-वेला की इबादत और रात भर मालिक के वियोग में विलाप मालिक की प्राप्ति के ख़ज़ाने की कुंजी हैं।'

ख्वाजा हाफ़िज़

शेख़ शिबली एक दिन अपने शिष्यों के साथ बैठे थे। सर्दी का मौसम था, आग जल रही थी। अचानक उनका ध्यान चूल्हे में जलती हुई लकड़ी के एक टुकड़े पर गया जो धीरे-धीरे सुलग रहा था। लकड़ी कुछ गीली थी, इसलिए आग की तपिश से पानी की कुछ बूंदें इकट्ठी होकर उसके एक कोने से टपक रहीं थीं। कुछ देर सोचने के बाद शेख़ शिबली ने अपने शिष्यों से कहा:

"तुम सब दावा करते हो कि तुम्हारे अन्दर परमात्मा के लिए गहरा प्रेम और भक्ति है, पर क्या कभी सचमुच विरह की आग में जले हो? मुझे तुम्हारी आँखों में न कोई तड़प, न ही विरह की वेदना के आँसू दिखायी देते हैं। इस लकड़ी के टुकड़े को देखो, यह किस तरह जल रहा है और किस तरह आँसू बहा रहा है। इस छोटे, मामूली टुकड़े से कुछ सबक़ सीखो।"


सच्चा परोपकारी

गुलाम हमेशा घर में नहीं रहता; पर 'पुत्र' हमेशा रहता है। इसलिए अगर 'पुत्र' तुम्हें आज़ाद कर देगा तो तुम सचमुच आजाद हो जाओगे।

-सेंट जॉन 

जेलखाने में कैदियों की बुरी हालत देखकर एक परोपकारी आता है और यह सोचकर कि इनको ठण्डा पानी नहीं मिलता, दस-बीस बोरियाँ चीनी की लाकर और कुछ बर्फ़ मिलाकर ठण्डा शरबत पिलाकर उनको खुश कर जाता है। एक अन्य परोपकारी आता है और यह देखकर कि उनको अच्छे गेहूँ की रोटी नहीं मिलती, बाजरा खाते हैं, कई मन मिठाई मँगवाकर खिला देता है। कैदी और खुश हो जाते हैं। 

इसी प्रकार तीसरा परोपकारी आता है और यह देखता है कि उनको अच्छे कपड़े नहीं मिलते, बल्कि मोटे मिलते हैं। वह उनको अच्छे नये कपड़ों की पोशाकें बनवाकर पहना देता है। कैदी और भी खुश हो जाते हैं। उन सबने सेवा की, सेवा करनी भी चाहिए लेकिन कैदी जेलखाने में ही रहे। हमें भी परोपकार करना चाहिए, लेकिन हमारा परोपकार किसी को चौरासी के जेलखाने से आजाद नहीं कर सकता। 

अब फिर इस जेलखाने की मिसाल की तरफ़ आओ। एक व्यक्ति के पास जेलखाने की कुंजी है। वह आकर जेलखाने के दरवाजे ही खोल देता है और कैदियों से कहता है कि अपने-अपने घर चले जाओ। सबसे अच्छा परोपकारी कौन हुआ? आप खुद ही सोच सकते हैं। जिसने आज़ाद कर दिया। सन्त-महात्मा दुनिया के जेलखाने की कुंजी लेकर आते हैं और वह कुंजी नाम है।



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