“गरीब वो है, जिसके पास न तो सपने हैं और न अभिलाषा” - स्वामी विवेकानंद

" मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं।" 11 सितंबर, 1893 को दिया स्वामी विवेकानंद का यह प्रसिद्ध 'शिकागो भाषण' आज भी प्रासंगिक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी उन्हें याद करते हुए कहा था, " स्वामी विवेकानंद करोड़ों भारतीयों के दिल और दिमाग में रहते हैं, विशेष रूप से भारत के गतिशील युवा जिनके लिए उनकी एक भव्य दृष्टि है।"



- जन्मः 12 जनवरी 1863 • मृत्युः 4 जुलाई 1902 -


शिकागो में दिए अपने ऐतिहासिक भाषण में स्वामी विवेकानंद दुनिया को हिंदू धर्म, उसकी परंपरा और 'सभ्यता से परिचित कराया। उनके इस भाषण ने भारत के बारे में दुनिया के सोचने का तरीका ही बदल दियाइतिहास के पन्नों में अमर हुए स्वामी विवेकानंद के इस भाषण को 11 सितंबर को 127 साल पूरे हुए हैं।


शिकागो में स्वामी विवेकानंद ने जैसे ही अपने संबोधन की शुरूआत में कहा- 'मेरे अमेरिकी भाईयों एवं बहनों', वहां उपस्थित लोगों ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया। स्वामी विवेकानंद ने अपने संबोधन में कहा था," मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है।


हम सिर्फ सार्वभौमिक सहिष्णुता पर ही विश्वास नहीं करते बल्कि, हम सभी धर्मों को सच के रूप में स्वीकार करते हैं, मैं इस मौके पर वह पंक्तियां सुनाना चाहता हूं जो मैंने बचपन से याद की और जिसे रोज़ करोड़ों लोग दोहराते हैं। जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकली नदियां, अलग-अलग रास्तों से होकर आखिरकार समुद्र में मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से अलग- अलग रास्ते चुनता है। ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगते हैं, लेकिन ये सब ईश्वर तक ही जाते हैं।"


शिकागो धर्म संसद के दौरान उन्होंने अपनी प्रत्येक यात्रा के दौरान जो कुछ भी देखा उसे अपने भाषण में शामिल किया और वापस आने के बाद उन्होंने युवाओं और समाज के लिए बहुत सराहनीय काम किएस्वामी विवेकानंद का दृष्टिकोण भारत और भारत के युवाओं के लिए बिल्कुल आधुनिक था। एक बार जब एक युवक ने स्वामी विवेकांदन से आग्रह किया कि वो उसे श्रीमद्भागवद् गीता का ज्ञान करा दें तो उन्होंने उस युवक को परामर्श दिया कि पहले छह महीने वह फुटबॉल खेले और अपनी क्षमता के अनुसार गरीबों और असहायों की सहायता करे फिर वह उसे गीता का ज्ञान प्रदान करेंगे।


स्वामी विवेकानंद के शब्दों में "आप अपने भाग्य निर्माता है। जिसके पास एक भी रूपया नहीं है वह गरीब नहीं है, गरीव तो वह है जिसके पास न तो सपने हैं और न अभिलाषा।" स्वामी विवेकानंद 19 वीं सदी के योगी रामकृष्ण परमहंस के प्रिय शिष्य थे। उन्होंने रामकृष्ण मठ की स्थापना की। रामकृष्ण मठ दुनिया भर में आध्यात्मिक आंदोलन के लिए रामकृष्ण मिशन के रूप में जाना जाता है, इस मठ का आधार वेदांत का प्राचीन हिंदू दर्शन है। 


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