लॉकडाउन से पहले हालातों का अंदाजा क्यों नहीं लगाया गया?

तो 14 अप्रैल के बाद भी बढ़ सकता है लॉकडाउन?

15 हज़ार से ज्यादा लोगो की भीड़ आनंद विहार बस स्टैंड पर   

अपील - जिलों और प्रदेश की सीमाओं पर फंसे
हजारों मजदूरों को अपने घरों पर पहुंचाया जाए 


‘मन की बात 2.0’ की 10वीं कड़ी में प्रधानमंत्री का संबोधन
लोगों से लॉकडाउन का पालन करने की अपील की




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आवाज़ ए हिंद टाइम्स सवांदाता, नई दिल्ली, 29, मार्च 2020, ‘मन की बात 2.0’ की 10वीं कड़ी के अपने संबोधन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कड़े फैसले लेने के लिए माफी मांगी और कहा कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में कड़े फैसले लेने की आवश्यकता थी।


उन्होंने कहा कि भारत के लोगों को सुरक्षित रखना महत्वपूर्ण है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि साथ मिलकर भारत कोविड-19 को हरा देगा।


लॉकडाउन लोगों और उनके परिवार को सुरक्षित रखेगा। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि जो लोग ‘अलग-अलग रहने’ का पालन नहीं कर रहे हैं उन्हें मुसीबतें झेलनी पड़ सकती हैं।



आज “मन की बात” कार्यक्रम में अपने विचारों को साझा करते हुए कहा कि उन्हें इस बात का खेद है कि लॉकडाउन के कारण लोगों विशेषकर गरीबों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने लोगों के लिए सहानुभूति व्यक्त की और कहा कि 130 करोड़ की आबादी वाले भारत जैसे देश में कोई अन्य विकल्प नहीं था। उन्होंने आगे कहा कि कड़े फैसले लेने पड़े क्योंकि यह जीवन या मृत्यु का प्रश्न था और यह देखते हुए कि पूरी दुनिया किस दौर से गुजर रही है।


उन्होंने एक सूक्ति का उद्धरण दिया, “एवं एवं विकार अपि, तरुन्हा साध्यते सुखम।” इसका अर्थ है बीमारी और इसकी विपत्ति को शुरूआत में ही खत्म कर देना चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि जब बीमारी असाध्य हो जाती है तो इसका इलाज मुश्किल हो जाता है। कोरोनावायरस ने दुनिया को बांध दिया है। प्रधानमंत्री ने कहा, “यह ज्ञान, विज्ञान, अमीर, गरीब, सामर्थवान, कमजोर- सभी को चुनौती दे रहा है। यह किसी एक देश की सीमा तक सीमित नहीं है और यह किसी क्षेत्र या मौसम का भी विभेद नहीं कर रहा है।”


प्रधानमंत्री ने इसे खत्म करने के संकल्प के साथ एकजुट होने के लिए पूरी मानवता का आह्वान किया क्योंकि इस वायरस से पूरी मानव जाति के विनाश का खतरा बन गया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि लॉकडाउन का पालन करना दूसरों की मदद करना नहीं बल्कि स्वयं को सुरक्षित रखना है। उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे अगले कुछ दिनों तक अपने व अपने परिवार की सुरक्षा करें और लक्ष्मण रेखा का पालन करें।


प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ लोग लॉकडॉउन का उल्लंघन कर रहे हैं क्योंकि वे मामले की गंभीरता को समझने की कोशिश नहीं कर रहे हैं। उन्होंने लोगों से लॉकडाउन का पालन करने की अपील की और कहा कि ऐसा नहीं होने पर हमें कोरोनावायरस की विपत्ति से अपने आप को बचाना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने एक उक्ति का जिक्र किया, “आरोग्यम परम भाग्यम्, स्वास्थम् सर्वार्थ साधनम्।” इसका अर्थ है अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ा सौभाग्य है। उन्होंने बल देते हुए कहा कि दुनिया में खुशी का एक मात्र रास्ता अच्छा स्वास्थ्य है।



29 मार्च को रविवार के दिन रेडियो पर मन की बात में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विनम्र शब्दों में देशवासियों से माफी मांगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने माना कि लॉकडाउन से देशवासियों को भारी परेशानी हो रही है, लेकिन भारत जैसे 130 करोड़ की आबादी वाले देश को बचाने के लिए ऐसी पाबंदियां जरूरी हैं। लोगों की कठिनाइयों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का माफी मांगना अच्छी बात है, लेकिन फिलहाल माफी मांगने से कुछ नहीं होगा।

 

20 मार्च से देशवासी कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। टीवी चैनलों पर राज्य सरकारें और केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि अपने अपने इंतजाम बता रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी 27 और 28 मार्च को देखा गया कि हजारों श्रमिक दिल्ली, यूपी, राजस्थान, गुजरात आदि प्रदेशों की सीमाओं पर नजर आए। एक ओर लोगों को घरों में ही कैद रखा गया तो दूसरी ओर हजारों की भीड़ प्रदेशों की सीमाओं पर फंसी रही।

 

हजारों लोग सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर अपने घरों पर पहुंच रहे हैं। सवाल उठता है कि जब देश में 24 मार्च को देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई, तब मजदूरों की ऐसी स्थिति का अंदाजा क्यों नहीं लगाया गया? क्या केन्द्र और राज्यों में बैठे लोग सिर्फ अपनी सफलताओं का दावा करने के लिए हैं? दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल तो प्रतिदिन प्रेस कॉन्फें्रस कर अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे है, जबकि सबसे ज्यादा भीड़ दिल्ली की सीमा पर ही है।

 

क्या मजदूरों को लेकर फैैक्ट्री मालिकों से पहले बात नहीं की गई? यदि मजदूरों को फैक्ट्री परिसर में ही रखा या फिर घरों पर भेजने की पहले व्यवस्था हो जाती तो सीमाओं पर ऐसी अराजकता की स्थिति नहीं होती। जाहिर है कि केन्द्र और राज्य के सारे प्रबंधन धरे रह गए हैं। हम जिन्हें बहुत आगे की सोच वाला मानते थे वे अपनी नाक के नीचे दिल्ली की स्थिति को नहीं समझपाए। प्रधानमंत्री जी शहरी क्षेत्रों के अस्पतालों में सभी चिकित्सक और स्वास्थ्य कर्मी पूरी निष्ठा के साथ काम कर रहे हैं। सवाल प्रशासनिक व्यवस्थाओं का है? यदि देशव्यापी लॉक डाउन के तीसरे और चौथे दिन ही हजारों श्रमिक उतर जाएंगे तो फिर कोरोना जैसे जानलेवा वायरस से कैसे लड़ा जाएगा? भविष्य में ऐसी भयावह स्थिति न हो इसके लिए पुख्ता इंतजाम करने चाहिए। न्यूज चैनलों और अखबारों में दावे करने से कुछ नहीं होने वाला है।

 

आगे बढ़ सकता है लॉक डाउन:-

याद होगा कि 19 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रात 8 बजे राष्ट्र के नाम संबोधन दिया था कि उसमें कहा गया कि मुझे आपके कुछ सप्ताह चाहिए। इसके बाद 24 मार्च को अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मोदी ने 21 दिन यानि 14  अप्रैल तक देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा कर दी। 29 मार्च को मन की बात में प्रधानमंत्री ने कहा कि देश की जनता को अभी कई दिनों तक धैर्य दिखाना होगा। इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि 14 अप्रैल के बाद भी देश में लॉकडाउन की स्थिति बनी रह सकती है।

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