गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर : उपचार हुआ आसान

लोगों को अनियमित जीवनशैली से होने वाले रोगों जैसे डायबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर आर हार्ट फेल जैसी बीमारियों के बारे में पता होगा, लेकिन बहुत से लोगों ने गस्ट्रोइटस्टाइनल कैसर (पेट की आंतों या पेट के कैंसर) के बारे में नहीं सुना होगा।


गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कैंसर


नई दिल्ली, अगस्त, सौरभ कुमार। नई तकनीकों से इसका उपचार आसान हो गया है। गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल यानी जीआई कैंसर भारत में चौथा सबसे अधिक लोगों को होने वाला कैसर बन गया है। यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करता है।


यह साइलेंट किलर के रूप में धीरे-धीरे बढ़ता जाता है और शरीर के आंतरिक अंगों जैसे बड़ी आंत, मलाशय, भोजन नली, पेट, गुर्दे, पित्ताशय की थैली, पैनक्रियाज या पाचक ग्रंथि, छोटी आंत, अपेंडिक्स और गुदा को प्रभावित करता है। इससे पीड़ित सपाहत लोगों को शुरू में पेट दर्द, अपच रहना, मलोत्सर्ग की आदत में गड़बड़ी आदि का सामना करना पड़ता है। इन्हें नजरअंदाज करने से स्थिति गंभीर हो जाती है।


जागरूकता है जरूरी -


सबसे बड़ी जरूरत लोगों में इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और उन्हें स्वस्थ पाचन तंत्र के महत्व को समझाना है। अभी जीआई कैंसर के संबंध में लोगों में जागरूकता की कमी है। मरीजों की देखभाल का समूचा ईकोसिस्टम बनाने की जरूरत है। इस ईकोसिस्टम के तहत मरीजों की जल्द से जल्द जांच. आधुनिक तरीकों से मरीजों का इलाज और उनके दर्द को कम करने वाली बेहतर देखभाल को प्रोत्साहन देना चाहिए।


जीवनशैली में बदलाव जरूरी -


रोग के प्रारंभिक लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर जीवनशैली में बदलाव की सलाह देते हैं इसके तहत पोषक आहार लेना, व्यायाम करना आदि शामिल है। इसमें मरीजों की समय से जांच को कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


समय पर जांच से सही उपचार-


एक मरीज के तौर पर लक्षणों को गंभीरता से लेना चाहिए और गैस्ट्रोएंटोलॉजिस्ट को समय पर दिखाना चाहिए। जांच सुविधाओं में फीकल अकल्ट ब्लड टेस्ट, नॉन-इनवेसिव विधियां जैसे पेट की अल्ट्रासोनोग्राफी, सीटी स्कैन और एमआरआई शामिल हैं। इससे उपचार काफी आसान हो जाता है।


जांच के नए-नए तरीके -


ये जीआई कैंसर रोग की स्थिति और लक्षणों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं। इनमें अंतर करने के लिए और कैंसर के खास प्रकार का पता लगाने के लिए मरीजों की जल्द से जल्द जांच करना बेहद आवश्यक है कोलनगियोस्कोपी की मदद से डॉक्टर पित्ताशय की थैली को देख सकते हैं। इससे उन्हें खास तरह के कैंसर का पता लगाने में मदद मिलती है। इससे उपचार काफी आसान हो जाता है।


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