सपनों के करीब लाने वाली उजली सुबह

- ललित गर्ग -


Dreams


हम सब अच्छे जीवन, सफलता और शुभ-श्रेयस्कर होने की कामना करते हैं। लेकिन जीवन तो उतार-चढ़ाव का खेल है। हम सभी कभी न कभी अवसाद और तनाव से आहत होते हैं तो कभी दुःखों से हमारा साक्षात्कार होता है। दुःखों एवं पीड़ाओं का एहसास निरन्तर बना रहता है। जिंदगी में हमेशा सब कुछ अच्छा और सही ही हो, कहां होता है। जिंदगी पूरी तरह परफेक्ट न होती है, न होगी। व्यापार, नौकरी, सेहत या रिश्ते, कोई न कोई परेशानी चलती ही रहती है।


लेखक तोबा बीटा कहते हैं-कोशिशें हमें बिल्कुल सही नहीं कर देतीं। वे केवल हमारी गलतियों को कम कर देती हैं। कभी हर सुबह को हम इस सोच और संकल्प के साथ शुरू करते हैं कि हमें अपने व्यक्तित्व निर्माण में कुछ नया करना है, नया बनना है। पर क्या हमने निर्माण की प्रक्रिया में नए पदचिन्ह स्थापित करने का प्रयत्न किया? क्या ऐसा कुछ कर सके कि 'आज' की आंख में हमारे कर्तृत्व का कद ऊंचा उठ सके? कहीं ऐसा तो नहीं कि हम भी आम आदमी की तरह यही कहें कि क्या करें, समय ने साथ नहीं दिया।


यदि ऐसा हुआ तो हम फिर एक बार आईने में स्वयं का चेहरा देखकर उसे न पहचानने की भूल कर बैठेंगे।‘बीते कल में हमने क्या खोया, क्या पाया' इस गणित को हम एक बार रहने दें अन्यथा असफल महत्वाकांक्षायें, लापरवाह प्रयत्न, कमजोर निर्णय और अधूरे सपने हमारे रास्ते की रोशनी छीन लेंगे। निराशा से हमें भर देंगे। इसलिए आज तो सिर्फ जीवन के इस आदर्श को सार्थकता देनी है कि हमें वही बनना है जो सच में हम हैं।


क्योंकि सारी समस्या का मूल यही है कि हम जो दिखते हैं, वे सच में होते नहीं और जीवन के इस दोहरेपन में सारी श्रेष्ठताएं अपना अर्थ खो बैठती हैं। आज इन पंक्तियों की सच्चाई को कौन कहां होता है। जिंदगी नकारेगा कि 'गरीब की गरिमा, सादगी का सौंदर्य, संघर्ष का हर्ष, समता का स्वाद और आस्था का आनंद, ये सब आचरण से पतझड़ झड़ गये हैं। जरूरी नहीं कि किसी अन्य के अपने बनाए नियम आप पर भी सही साबित हों।


परेशानी तब आती है, जब हम बिना सोचे-समझे दूसरे का अनुसरण करने लगते हैं। इसके बजाय हमें हमेशा अपनी जड़ों, अपने विचारों पर विश्वास रखना चाहिए। हम अपनी गलतियां नहीं देखते, पर दूसरों की गलतियों पर ज्यादा ही कठोर हो जाते हैं। होना यह चाहिए कि हम अपनी गलतियों के लिए भले कठोर हो जाएं, पर दूसरों को आसानी से माफ कर दें। यूं कभी-कभी दूसरों को परखना पड़ जाता है, पर उसके लिए जरूरी है मन का पूर्वाग्रह से मुक्त होना।


लेखक क्रिस जैमी कहते हैं, 'किसी को जानना-समझना मुश्किल नहीं है। मुश्किल अपने पूर्वाग्रहों को परे रखना है। समय के साथ आदमी बदलता है मगर जीवन मूल्य नहीं। दायरे और दिशायें बदलती हैं मगर आदर्श तथा उद्देश्य नहीं। बदलने की यह बात जीवन का सापेक्ष दर्शन है।


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