प्रदूषण को रोकने की कवायद धान के अवशेष जलाने पर 

पहल: दादी में पराली से बिजली का उत्पादन शुरू


5000 करोड़ का नया बाजार तैयार होगा देश में सालाना


21 बिजलीघरों में 19,440 टन रोजाना ऐसा ईधन चाहिए


पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को बड़ा फायदा


नोएडा, संवाददाता, नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन की योजना का पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को भी बड़ा लाभ मिलेगा। गन्ना किसान फसल कटाई के बाद पत्ती जलाते हैं। इससे भी प्रदूषण बढ़ता है। अब गन्ना किसान पत्ती बेच सकते हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी होगी।



एनटीपीसी के दादरी बिजलीघर में धान की पराली को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करके विद्युत उत्पादन शुरू हो गया है। एनटीपीसी के महाप्रबंधक एके दास ने गुरुवार को पत्रकार वार्ता में यह जानकारी दी। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एनटीपीसी की कोशिश धान की पराली को जलाने से हो रहे प्रदूषण को रोकना है। एके दास ने बताया कि धान, गेहूं, जवार और अन्य कृषि अवशेषों को किसानों से खरीदा जा रहा है। इन अवशेषों के गट्टे (पेलेटस) तैयार किए जा रहे हैं। गट्ठों को कोयले के साथ आशिक रूप से जलाकर विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। पराली आधारित ईधन से बिजली उत्पादन आरंभ कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के ईंधन की नियमित आपूर्ति अभी आसान नहीं है।


इसमें अभी कुछ समय लगेगा। पावर प्लांट में कोयले के साथ कृषि अवशेषों के बने पेलेटस के प्रयोग को तकनीकी भाषा में बायोमास को-फायरिंग कहते हैं। इस दिशा में केंद्र सरकार ने बायोमास को- फायरिंग प्रोत्साहन के लिए जरूरी नीति बनाई है। महाप्रबंधक ने बताया कि कृषि अवशेषों को एकत्र करने, संग्रहण करने और उससे पेलेट्स/टोरी फाइड पेलेट्स बनाने के लिए निवेश होगा। इस क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलेगा और कृषि अवशेषों के लिए बाजार मिलेगा। साथ ही व्यापार व रोजगार के नए अवसर सृजित होंगे। देशभर में 21 बिजलीघरों में पेलेट्स आपूर्ति के लिए लोगों से रूचि पत्र (ईओआई) आमंत्रित किये गये हैं। इस ईंधन की खपत 19,440 टन प्रतिदिन है।


जिससे करीब पांच हजार करोड़ रुपये का सालाना बाजार बन सकता है। पराली और अन्य कृषि अवशेषों को खेतों में जलाये जाने की वजह से वायु प्रदूषण बढ़ रहा है। घटनाएं सुर्खियों में हैं। खासकर ऐसे कृषि अवशेष जो पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग नहीं किए जर सकते उन्हें किसान फसल कटाई के बाद खेतों में ही जला देते हैं। जिससे भारी मात्रा में धुंआ और राख हवा में घुल जाती है और प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। हरियाणा, यूपी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जैसे कृषि अवशेष जलाने से दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से जूझना पड़ता है।


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