लाल खजूर कारगर कैंसर से लड़ने में 

 


लैब में हुए अध्ययन में कैंसर कोशिकाओं का सामना लाल खजुर से होने पर कैंसर कारक ट्यूमर में दबाव बढ़ा और वह खुद ब खुद खत्म हो गए। हालांकि अभी यह पता नहीं चल सका है कि लाल खजूर कैंसर होने से रोकता है या यह कैंसर कारक ट्यूमर को ठीक करने में मददगार है। शोधकर्ताओं ने लैब में फेफड़ों, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं का खजूर के 8 कंपाउंड से सामना करवाया गया। विशेषज्ञों ने देखा कि खजूर के चार कंपाउड से कैंसर कोशिकाओं ने दम तोड़ दिया और तीन अन्य की वजह से उन्होंने खुद को खत्म कर लिया। लाल खजूर में मध्यपूर्वी खजूर के मुकाबले 32 गुना अधिक विटामिन सी होता है। साथ ही इसमें एंटी ऑक्सिडेंट की मात्रा भी काफी अधिक होती है। इसके अलावा तीन खजूर में 54 कैलोरी और 12 ग्राम तक शक्कर होती है।


लाल खजूर कारगर कैंसर से लड़ने में 


 


एशियाई क्षेत्रों में मिलने वाला लाल खजूर कई गुणों की खान है। अब एक अध्ययन में दावा किया गया है कि खजूर में मौजूद तत्व कैंसर का खात्मा करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। यह देखने में मध्यपूर्व देशों में मिलने वाले खजूर की तरह होते हैं और यह फेफड़ों, ब्रेस्ट और प्रोस्टेट कैंसर कोशिकाओं का खात्मा करने में सक्षम हैं। इन्हें खाने से कैंसर कारक ट्यूमर की संरचना में आंदरूनी दबाव बढ़ता है, जिससे वह क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इनका इस्तेमाल अनिद्रा की बीमारी और भूख बढ़ाने में पारंपरिक चीनी दवाओं में भी किया जाता है। यह अध्ययन फूड एंड फंक्शन पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। यह अध्ययन रॉयल सोसाइटी ऑफ केमिस्ट्री में किया गया।


बाहर समय बिताने से बेहतर रहता है स्वास्थ्य -


प्रकृति के नजदीक रहने और बाहर समय बिताने से टाइप-टू मधुमेह, हृदय संबंधित बीमारियां, अकाल मौत और समय से पूर्व जन्म और लोगों में तनाव पैदा होने का खतरा कम होता है। इस अध्ययन में 20 देशों के 29 करोड़ लोगों के आंकड़ों को शामिल किया गया है। अध्ययन के अनुसार जहां लोग प्रकृति के ज्यादा नजदीक होते हैं, उनकी सेहत अच्छी होती है। ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंगलिया काओम्हे तोहिंग-बेनेट ने बताया कि प्रकृति के नजदीक समय बिताने से निश्चित रूप से हम लोग स्वस्थ महसूस करते हैं लेकिन अभी तक लंबे समय तक स्वस्थ रहने के प्रभाव को अच्छे से समझा नहीं गया था। इस अनुसंधान में टीम ने प्रकृति के नजदीक रहने वाले लोगों की तुलना ऐसे लोगों से की जो हरे - भरे जगहों में कम ही रहते हैं। तोहिंग- बेनेट ने बताया कि हमने पाया कि हरे-भरे जगहों या इसके नजदीक रहना स्वास्थ्य लाभ से जुड़ा हुआ है। इससे टाइप - टू मधुमेह, हृदय संबंधित बीमारियां, अकाल मौत और समय से पूर्व जन्म सहित अन्य खतरे कम होते हैं और इससे नींद की अवधि बढ़ती है।


 


डायबिटीज से फेफड़े की बीमारी होने का खतरा ज्यादा


डायबिटीज रहित लोगों की तुलना में टाइप-2 डायबिटीज वाले लोगों में रिस्ट्रिक्टिव फेफड़े की बीमारी (आरएलडी) विकसित होने का जोखिम ज्यादा होता है। आरएलडी की पहचान सांस फूलने से की जाती है। जर्मनी के हेडेलबर्ग अस्पताल विश्वविद्यालय के स्टीफन कोफ ने कहा कि तेजी से सांस फूलना, आरएलडी व फेफड़ों की विसंगतियां टाइप-2 मधुमेह से जुड़ी हैं। जानवरों पर किए गए पहले के निष्कर्षों में भी रिस्ट्रिक्टिव फेफड़े की बीमारी व डायबिटीज के बीच संबंध का पता चला था। विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पीटर पी. नवरोथ ने कहा कि हमे संदेह है कि फेफड़े की बीमारी टाइप-2 डायबिटीज का देर से आने वाला परिणाम है। शोध से पता चलता है कि आरएलडी एल्बुमिन्यूरिया के साथ जुड़ा है। एल्ब्यूमिन्यूरिया एक ऐसी स्थिति है, जिसमें पेशाब का एल्ब्यूमिन स्तर बढ़ जाता है। यह फेफड़े की बीमारी व गुर्दे की बीमारी के जुड़े होने का संकेत हो सकता है, जो कि नेफ्रोपैथी से जुड़ा है। नेफ्रोपैथी-डायबिटीज गुर्दे से जुड़ी बीमारी है।


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