देर नहीं लगती प्रभु की कृपा में 

तुम्हारे घट में ही तीर्थ है


भारत की पूण्यभूमि पर अनेक ऋषि-मुनि, संत-महात्मा, पीरफकीर, दार्शनिक एवं विद्वान अवतरित हुए हैं, उन्होंने जो ज्ञान हमें दिया, अगर हम उसको जीवन में अपना लें, तो हमारा यह लोक भी सुखी होगा और परलोक भी आनन्ददायक होगा।



(सुधांशु जी महाराज)


उस परमात्मा को कृपा करने में देर नहीं लगती लेकिन यह जो बीच का अन्तराल है इसमें स्थिरता बनाये रखना चाहिये। चंद्रमा की यह विशेषता है कि वह बांटना जानता है। समस्त वनस्पतियों में रस बांटना जानताहै, चंद्रमा सबमें रस का संचार करता है। दत्तात्रेय ने कहा- मुझे समझ में आया कि इंसान को मुस्कराते रहना चाहिये, मिठास बांटते रहना चाहिये। चंद्रमा की तरह चमक सकेगा, क्योंकि भगवान शिव ने भी चंद्रमा को धारण किया है। चंद्रमा में एक विशेषता और है-शालीनता, विनम्रता, शीतलता। किसी ने पूछा कि चंद्रमा से-हे चंद्र! तुम्हारे पास अपना स्वयं का प्रकाश नहीं है।


सूरज का प्रकाश, चंद्रमा से परावर्तित होकर धरती पर आता है तो चंद्रमा की किरणें बड़ी शीतल मालूम पड़ती हैं। किसी कवि ने पूछ लिया कि हे चंद्रमा जब सूरज प्रकाश देता है तो सूर्य की गर्मी जलाती है लेकिन जब तुम प्रकाश देते हो तो प्रकाश बड़ा ठंडा लगता है। अंतर क्यों हैइतना? चंद्रमा मुसकरा कर बोला कि सूरज जब प्रकाश देता है तो अकड़कर देता है। मेरे पास अपना तो कुछ है नहीं। मैं आगे देते हुए अकड़ क्यों दें? झुक झुक कर देता हूं तो वही शीतल बन जाता है, लोगों को ठंडक पहुंचाता है। दत्तात्रेय कहने लगे कि हम सबके पास अपना क्या है? दिया हुआ तो भगवान का है, परमात्मा ने ही तो सबको दिया है। उसके दिये हुए को आगे देते समय अपनी अकड़ क्यों दिखनी? अपना अहंकार का प्रदर्शन करोगे तो अशांति आयेगी और विनम्र बनकर चलोगे तो शांति प्राप्त होगी। इसलिए विन्रमता अपना लेने में ही कल्याण है। विनम्रता से ही चैन पहुंचेगा।


 


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