दवा लेना मुश्किल सरकारी अस्पतालों में!

पश्चिमी दिल्ली, बाहरी दिल्ली की आबादी को कवर करने वाले महर्षि वाल्मीकि अस्पताल में फ्री दवा लेना आसान नहीं हैं। अस्पताल में दवा के लिए लंबी कतार लगती हैं। मरीजों को कतार में चार घंटे इंतजार के बाद दवा नसीब होती हैं। सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्ग, बच्चों और महिलाओं को होती है। क्योंकि अस्पताल की फार्मेसी में बैठने की भी व्यवस्था नहीं हैं। केवल इतना ही नहीं फार्मेसी ब्लॉक में गाड्र्स की तानाशाही देखने को मिलती हैं। अस्पताल में गाड्र्स मरीजों को धक्के देकर बाहर निकाल देते है।


दवा लेना मुश्किल सरकारी अस्पतालों में!


फार्मेसी में दवा के लिए मरीजों की बाहर तक लाइन लग जाती है। भीड़ के चलते मरीजों में कई बार आपसी विवाद भी हो जाता है। अस्पताल में कहने को तो दवा वितरण के लिए आठ काउंटर है। लेकिन अस्पताल प्रशासन द्वारा सभी काउंटर नहीं खोले जाते हैं। अस्पताल में दवाई लेने आई अनीता ने बताया कि पहले ओपीडी कार्ड के लिए लाइन में लगनापड़ता है, फिर डॉक्टर से चेकअप के लिये घंटों इंतजार के बाद दवा वितरण तक पहुंचते हैं तो दवाई देने वाले कर्मचारी यह कहते हैं कि दवा उपलब्ध नहीं है।


फार्मासिस्ट बने बाबू - अस्पताल में फार्मासिस्ट प्रशासनिक कार्य संभाल रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि फार्मासिस्ट दवाई बांटने का काम नहीं करते है। बल्कि अस्पताल में ट्रेनी इस काम को करते हैं। जिसके कारण वह दवा वितरण करने में ज्यादा समय लेते है। यही नहीं दवा भी कई बार मरीजों को गलत थमा देते है। बताया जा रहा हैं कि अस्पताल में पांच फार्मासिस्ट है लेकिन उनमें से कोई भी दवाई वितरित नहीं करता है। इस संदर्भ में स्थानीय विधायक रामचंद्र बताया कि अगर मरीजों को इस तरह की समस्या आ रही है तो उसे अस्पताल के एमएस से मिलकर इस परेशानी को तत्काल दूर किया जाएगा।


प्राइवेट के लिए पैसे नहीं, सरकारी में सुनवाई नहीं


प्राइवेट के पैसे नहीं हैं सरकारी अस्पताल में कोई सुनवाई नहीं हैं, अपनी बीमारी को लेकर दर-दर भटक रहा हूं। लेकिन कोई भी तरस खाने को तैयार नहीं हैं। यह कहानी है बाबा साहेब अंबेडकर अस्पताल में आए एक मरीज कि जो पिछले कई दिनों से अस्पताल के चक्कर लगाकर परेशान है। मरीज की बीमारी पर कोई रहम खाने को तैयार नहीं है। 73 वर्षीय महेद्ध झा ने बताया कि पेशाब की थैली में न परेशानी होने की वजह से प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टर ने उनको ऑपरेशन करने के लिए कहा लिए कहा, लेकिन महेद्र झा के पास इतना पैसा नहीं है कि वह प्राइवेट में आपरेशन कर सके। जिसके बाद डॉक्टर ने उनको जल्द से जल्द इलाज करने की सलाह दी, लेकिन जब परिजन उनको अंबेडकर अस्पताल के आपातकालीन में लेकर पंहुचे तो डॉक्टर ने उनको ओपीडी में दिखाने के लिए कहा। ओपीडी में डॉक्टर ने कहा कि कुछ जांच कराने के बाद ही भर्ती किया जाएगा। इस संबंध में अस्पताल के एमएस डॉक्टर मनमोहन कोहली से कई बार संपर्क किया गया, लेकिन उन से संपर्क नहीं हो सका।


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