सत्कर्म करते रहिए

- पावन प्रसंग -


सत्कर्म करते रहिए



सत्कार्यों का समाज में सदैव अभिनंदन होना चाहिए।सत्कार्यों द्वारा सबको सुख-शांति मिलती है। वेद भगवान कहते हैं -


मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिवं रजः।


मंधु द्यौरस्तु नः पिता।।


अर्थात संसार में ऐसे कार्य करने चाहिए, जिन से सभी को सुख, शांति और प्रसन्नता मिले। मनुष्य जीवन की स्थिरता एवं प्रगति की आधारशिला है- सर्वत्र उसकी कर्तव्यपरायणता । यदि हम अपनी जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन रहें और निर्धारित कर्तव्यों की उपेक्षा करें तो फिर ऐसा गतिरोध उत्पन्न हो जाए कि प्रगति एवं उपलब्धियों की बात तो दूर, मनुष्य की तरह जीवनयापन कर सकना भी संभव न रहे। चारों ओर कलह-क्लेश ही दिखाई दे। जीवन की हर विभूति कर्तव्यपरायणता पर निर्भर है।


हर उपलब्धि की स्थिरता एवं सुरक्षा कर्तव्यनिष्ठा पर ही आधारित है। हमें जो बहुमूल्य शरीर मिला है, उसे नीरोग, परिपुष्ट एवं दीर्घजीवी रखने की जिम्मेदारी हमारी ही है। जिससे कि हम संसार में अधिकाधिक लोक-मंगल के कार्य कर सकें और सर्वत्र सुख, शांति और प्रसन्नता का वातावरण बना सकें। मन को समर्थता और प्रखरता के लिए उसे चिंता, शोक, निराशा, भय, क्रोध, आवेश आदि से बचाने का काम भी हमारा ही है। इसी से अंत:करण में उल्लास, उत्साह, धैर्य, साहस, संतोष, संतुलन, स्थिरता, एकाग्रता, विश्वास जैसे सद्गुणों साहस, संतोष, संतुलन, स्थिरता, एकाग्रता, विश्वास जैसे सद्गुणों को स्थापित किया जा सकता है। यदि मन को खरपतवार की तरह चाहे जहां चढ़ने दिया गया तो यह स्वयं हमारा ही शत्रु बन जाएगा। मन को साधने और अपने व्यक्तित्व को सुसंस्कृत बनाने की जिम्मेदारी प्रत्येक व्यक्ति की है।


पारिवारिक जीवन की उपलब्धियां अनुपम हैं पर यह तभी संभव है, जब परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने उत्तरदायित्व का उचित निर्वाह करे। सबके स्वास्थ्य, सुविधा, संतोष एवं विकास को हर आवश्यकता को पूरी तत्परता, सावधानी और ईमानदारी के साथ निभाया जाए।बच्चों को सुसंस्कृत और सुव्यवस्थित बनाने के लिए उन्हें प्यार,समय और सहयोग देते रहने की जिम्मेदारी भी हमको पूरी करनी चाहिए। परिवार का आनंद केवल कर्तव्यपरायण लोग ही ले सकते हैं। समाज का प्रत्येक नागरिक मानवीय उत्तरदायित्व से लदा हुआ है। सभ्य समाज का हर नागरिक अपनी नैतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारी के प्रति सजग और सचेष्ट रहता है तथा देश की प्रतिष्ठा बढ़ाता है। समाज में विचार, वातावरण और पर्यावरण की शुद्धता बनाए रखना हर व्यक्ति का कर्तव्य है। सामूहिक उत्कर्ष में जो जितनी रुचि लेता है और लोक मंगल के लिए जितना त्याग प्रस्तुत करता है, वह उतना ही बड़ा महामानव गिना जाता है।


समाज में चहुं ओर सुख-शांति का वातावरण बने और सभी प्रगति के पथ पर सुगमतापूर्वक चल सकें; इसके लिए आवश्यक है कि हम सभी अपने कर्तव्यों को भलीभांति समझे। आत्मा की आवाज को सुनें और परमात्मा द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन करते हुए मानव जीवन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करते रहें।


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